Tuesday, June 25, 2019

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा!

PANKAJ SHARMA
22 June 2019


पिछले शनिवार को ‘कांग्रेस के भीतर बैठे दस दुश्मन’ छपने के बाद जितने संदेश और फ़ोन आए, हाल-फ़िलहाल तो, कभी नहीं आए। जो-जो यहां-वहां मिले, सब के मन में कांग्रेस के मौजूदा हालात को ले कर सनसनाहट थी। हर तरह के वैचारिक रंगों से रंगे लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। सब एक-एक बात से पूरी तरह सहमत थे। कुछ ने मुझे ‘अपना ख़्याल रखने’ का सरोकारी-मशविरा भी दिया।
मैं ने कुछ भी अनोखा नहीं लिखा था। ये बातें तो लोग पिछले कई बरस से कर रहे थे। किसे नहीं पता था कि कांग्रेस भीतर से क्यों और कैसे खोखली होती जा रही है? मैं ने बस लिख भर दिया। सब के मन की बात थी, सो, सबको अपनी-सी लगी। कइयों ने कहा कि हमने तो सोचा था कि आप उन दस लोगों के नाम गिनाएंगे, जिनकी वज़ह से ये दुर्दिन आए, पर आपने यह हिम्मत नहीं दिखाई
मैं मानता हूं कि व्यक्ति कुछ नहीं है। सब कुछ प्रवृत्ति है। इसलिए मैं ने पिछली बार दस में से वे पांच प्रवृत्तियां गिनाईं, जिनके चलते बरस-दर-बरस की तपस्या से संचित कांग्रेस की ऊष्मा सात-आठ बरस में इस तरह स्खलित हो गई। इन प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों को कांग्रेस के भीतर-बाहर कौन नहीं जानता है? मुझ से ही इन नामों को सुनना जिनकी अंतिम इच्छा है, ज़रूरी होगा तो मैं किसी दिन उनकी इस ख़्वाहिश का दधीचि भी बन लूंगा। फ़िलवक़्त तो बाक़ी बची पांच दुश्मन-प्रवृत्तियों का तब्सरा पेश है।
6. बेमुरव्वत ठेंगा-भावः कांग्रेस में एक-दूसरे के बीच आंखों की शर्म अब इतनी दुर्लभ हो गई है कि पिछले कुछ साल से सब सबको अपने ठेंगे पर रखे घूम रहे हैं। इसे आंतरिक लोकतंत्र के अतिरेक से उपजी अनुशासनहीनता का नतीजा कह लीजिए या शिखर-नेतृत्व की भलमनसाहत की वज़ह से बेलिहाज़ हो गए सूबेदारों की भयादोहन-तिकड़मों परिणाम। लब्बोलुआब यह है कि हर राज्य में कांग्रेसी क्षत्रप मान बैठे हैं कि उनके आंगन में दूसरों का कोई काम नहीं है। वे भूल गए हैं कि वे जो कुछ हैं, पार्टी-संगठन की बदौलत हैं और वे जो कुछ हैं, शीर्ष-नेतृत्व के स्नेहिल-स्पर्श की वज़ह से हैं। कांग्रेस की मानसरोवर-झील के जल में कितना नैतिक बल है, कितना नहीं, इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि सत्ता की लूटपाट में महारत के बूते भस्मासुर बन बैठे लोग अपने किए-कराए पर निग़ाहें नीची करने का दस्तूर, पता नहीं किस पोखर के हवाले कर आए हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसे में इन लठैतों की लाठियां तोड़े बिना राहुल गांधी कांग्रेस को मौजूदा कचड़कांध से बाहर ला सकते हैं?
7. मीडिया-एकालापः पिछले कोई एक दशक में कांग्रेस के मीडिया संप्रेषण की बुनियादी लय ही गड़बड़ा गई है। मैं ने एक संवाददाता के नाते कांग्रेस को कवर करते वह ज़माना देखा है कि जब एक अकेले विट्ठल नरहरि गाडगिल पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हुआ करते थे और चंदूलाल चंद्राकर उनके एकमात्र सह-प्रवक्ता। ठीक है कि वह टेलीविजन चैनलों की खर-पतवार का दौर नहीं था। लेकिन मुद्रित-मीडिया की बेहद मजबूत उपस्थिति  और दूरदर्शन के बाद कुछ शुरुआती समाचार चैनलों के उदय के बावजूद कांग्रेस का संप्रेषण संस्कार क़ायम था और पार्टी के बोले एक-एक शब्द पर इसलिए समाचार-जगत की नज़रें रहती थीं कि वे संजीदा और वज़नदार ज़ुबानों से बह कर बाहर आते थे। 
आज कांग्रेस का हरा-भरा बगीचा इसलिए भी सूख रहा है कि सैकड़ों राष्ट्रीय प्रवक्ताओं और हज़ारों प्रादेशिक प्रवक्ताओं की गाजर-घास अपनी मौज़ में लहरा रही है। कांग्रेस का मीडिया-संवाद एकालाप से ग्रस्त है। सुबह-दोपहर-शाम ट्वीट कर देने और बड़े-से़-बड़े मसले पर कैमरों के सामने रोबोटनुमा-टिप्पणी दे देने भर को अपनी फ़र्ज़-अदायगी समझने वाले, सूचनाओं के जंगल में हो रहे सच के शिकार को, भला क्या खाकर रोकेंगे? मीडिया-चौबारे पर प्रलाप करने वाले कांग्रेस के ज़्यादातर प्रवक्ता और उनके ख़लीफ़ा हैं तो पोले झुनझुने, मगर उनका वैचारिक दंभ और माइकल जैक्सन शैली के बोढ तले कांग्रेस का दम घुट गया है। क्या आपको लगता है कि व्यक्तिवादी कुंठा से लबरेज़ इस चिलम-ब्रिगेड से छुटकारा पाए बिना राहुल गांधी कांग्रेस को फिर देश का दिलबर बना सकते हैं?
8. प्रशिक्षण-दिग्भ्रमः 2003 के शिमला चिंतन शिविर में सोनिया गांधी ने तय कराया था कि देश भर के महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं और हर स्तर के पदाधिकारियों को निरंतर राजनीतिक-वैचारिक प्रशिक्षण देते रहने के लिए कांग्रेस एक अकादमी स्थापित करेगी। वे कौन हैं, जिनकी मेहरबानी से 16 साल बाद भी सोनिया की यह इच्छा अधूरी है। पांच साल पहले केंद्र की सत्ता में आई मोशा-जोड़ी ने इस बीच दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर दस एकड़ ज़मीन लेकर भाजपा की एक प्रशिक्षण अकादमी शुरू भी कर डाली। मगर कांग्रेस के अग्रिम संगठन अब भी प्रशिक्षण-प्रक्रिया के बाल-भवन में झूला झूल रहे हैं और अगर उनके प्रशिक्षण शिविरों के पाठ्यक्रम पर आप एक नज़र घुमा लेंगे तो हंसते-हंसते आपकी आंखों से आंसू गिरने लगेंगे। क्या आपको लगता है कि डेढ़-डेढ़ दशक तक सोनिया के निर्देशों तक की परवाह न करने वालों के रहते राहुल गांधी कांग्रेस को आज के माहौल में प्रासंगिक बनाए रख सकते हैं?
9. बाबू-गिरोहः देश-प्रदेशों में पार्टी-संगठन के दफ़तरों की जाज़म पर जमे बैठे हर स्तर के कार्यालयीन सहयोगियों का जाल-बट्टा ऐसा है कि ज़्यादातर नेताओं को तो पता भी नहीं चलता है कि उनके आसपास चल क्या रहा है? सरकारें जैसे मंत्री कम, नौकरशाह ज़्यादा चलाते हैं, वैसे ही कांग्रेस पार्टी का कामकाज भी उसके पदाधिकारी कम, ये बाबू ज़्यादा चलाते हैं। अपनी पसंद-नापसंद और शुल्क-आधारित व्यवस्था के इन पोषकों का कांग्रेस की मौजूदा हालत में योगदान कम मत आंकिए। क्या आपको लगता है कि इस दूषित सचिवालयीन व्यवस्था का जड़ से नाश किए बिना राहुल कांग्रेस को सियासत के उत्तंग शिखर पर ले जा पाएंगे?
10. मुख़बिर-टोलीः कहेगा कोई नहीं, पर जानते सब हैं कि कौन, कहां, किस के लिए काम कर रहा है। कांग्रेस की भीतरी रणनीतियां जस-की-तस उसके विरोधियों के पास जितनी आसानी से पहुंच जाती हैं, उस पर मैं एक पूरा ‘जासूस चरित मानस’ लिख सकता हूं। क्या आपको लगता है कि इन जयचंदों के रहते राहुल कांग्रेस को आज का कुरुक्षेत्र जिताने का सोच भी सकते हैं?
नरेंद्र भाई मोदी तो परिस्थितियों का अनिवार्य परिणाम हैं। मगर साथ ही, वे बेहद चालाकी से निर्मित मिथक भी हैं। राहुल ने इस चुनाव में साबित किया है कि वे इस परिणाम और कल्प-कथा को नेस्तनाबूत करने का ग़ज़ब माद्दा और जज़्बा रखते हैं। राहुल जानते हैं कि उतार-चढ़ाव किस कथा में नहीं होते? बनवास है तो विजय भी है। यही जीवन है। इस जीवन से क्या भागना? सो, वे भाग नहीं रहे हैं। वे कुछ लोगों के भीतर बसी ऐतिहासिक दुविधा का कुहासा छांटने के लिए ख़ुद को बीच से हटा रहे हैं।
राहुल गांधी कांग्रेस के क़ाबिल हैं कि नहीं, सो, कांग्रेस जाने; मैं तो इतना जानता हूं कि आज की कांग्रेस राहुल के क़ाबिल नहीं है। इसलिए, बावजूद इसके कि मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि शीर्ष पर राहुल की अनुपस्थिति से कांग्रेस अपने इतिहास के अंतिम अध्याय में प्रवेश कर जाएगी, इस कांग्रेस को इन्हीं कांग्रेसियों के हवाले कर देना बेहतर है। ये भी तो अपने बाहर-भीतर के दुश्मनों से दो-दो हाथ कर के ज़रा देखें। और, हम भी देखें कि राहुल को नाकाम और ख़ुद को कांग्रेस के कायाकल्प का विश्वकर्मा समझने वाले देव-पुरुष आज की कांग्रेस के विषय-विकार हटा कर उसके कितने पाप हरते हैं! (लेखक न्यूज़-व्यूज इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।)

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