Thursday, October 8, 2009

राम-राज्य के स्वयंभू संस्थापक के बारे में

दो साल पहले चंद्रास्वामी ने ऐलान किया था कि अब उनका तन-मन-धन श्रीराम सेतु की रक्षा के लिए अर्पित है। वह 2007 के मार्च का आखिरी बुधवार था और चंद्रास्वामी बनारस में दोपहर ढाई बजे केदारघाट के विद्या मठ में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के कमरे में घुस कर सवा तीन बजे बाहर आए। बातचीत का मुद्दा था कि रामेश्वरम के श्रीराम सेतु को कैसे बचाया जाए? अरसे बाद चंद्रास्वामी को फिर चौधराहट करने का बहाना मिला गया था। अपने को हमेशा किसी-न-किसी तरह सुर्खियों में बनाए रखने के लिए छटपटाते रहने वाले चंद्रास्वामी ने श्रीराम सेतु की रक्षा के लिए इन दो सालों में क्या किया, यह तो वे जानें, लेकिन जानने वाले इतना ज़रूर जानते हैं कि अब वे फिर मंच की तमाम रोशनियों का रुख अपनी तरफ़ करने का कोई मौका तलाश रहे हैं।

श्रीराम सेतु की बात मैं फिर कभी करूंगा। अभी चंद्रास्वामी की बात करें। मैं चंद्रास्वामी से डेढ़-दो दशक पहले सिर्फ एक बार मिला हूं। दिल्ली से मुंबई जा रही उड़ान के दौरान चंद्रास्वामी के एक नजदीकी पत्रकार ने मेरा परिचय उनसे कराया था। चंद्रास्वामी उस जमाने में आसमान पर उड़ रहे थे और उनके आश्रम में जाने वालों की लंबी कतार रहा करती थी। उन्होंने मुझ से भी किसी दिन अपने आश्रम आने को कहा, लेकिन मुझे उनके पास जाने की कभी इच्छा नहीं हुई। इसलिए अब जब चंद्रास्वामी को देश में राम-राज्य की स्थापना का फितूर फिर सवार हुआ है, आपको यह याद दिलाना जरूरी है कि उनका कोई भी सामाजिक-धार्मिक अभियान राजनीतिक कोण रखे बिना कभी शुरू होता ही नहीं है। राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान जिन्होंने चंद्रास्वामी की भूमिका पर गहराई से निगाह रखी होगी, वे जानते होंगे कि भगवा वस्त्रों से लिपटी इस काया की खोपड़ी किस कदर राजनीति में पगी हुई है। चंद्रास्वामी की समर्थक शक्तियां भले ही अब वैसी मजबूत नहीं हैं, भले ही अब देश में ऐसा प्रधानमंत्री नहीं है, जिसके घर में उनकी कार बेरोक-टोक कभी भी घुस जाए और भले ही चंद्रास्वामी का अंतरराष्ट्रीय जलवा अब वैसा नहीं रहा है, मगर मौका मिलते ही गुलाटी खाने का जज्बा अब भी चंद्रास्वामी में उसी तरह बरकरार है। ज्योतिष और तंत्र विद्या के आधे-अधूरे जानकार चंद्रास्वामी अपने सितारों की चाल बदलने को बेताब हैं।

मैं नहीं जानता कि चंद्रास्वामी ने राजीव गांधी की हत्या के लिए इस्राइल के एक भाड़े के हत्यारे को दस लाख डॉलर देने की पेशकश की थी या नहीं? मैं नहीं जानता कि हैरॉड्स पर कब्जे को ले कर जब मुहम्मद अल फयाद और टोनी रॉलैंड के बीच तलवारें खिंची हुई थीं तो चंद्रास्वामी ने रॉलैंड को कैसे काबू किया था? मुझे यह भी नहीं मालूम कि तब चंद्रास्वामी ने रॉलैंड से बातचीत टेप की थी या नहीं और ये टेप तब के बेहद बदनाम बैंक बीसीसीएल की मोंटे कार्लो शाखा के लॉकर में छुपा कर रखे थे या नहीं? मुझे यह भी पता नहीं कि बोफोर्स कंपनी के मुखिया मॉर्टिन आर्डबो से मिल कर चंद्रास्वामी ने उनसे यह कहा था या नहीं कि वे उन्हें बु्रनेई का सलाहकार बनवा सकते हैं और इसके बदले में चंद्रास्वामी आर्डबो से क्या चाहते थे? मैं यह भी नहीं कह सकता हूं कि दो दशक पहले ज्ञानी जैल सिंह को दोबारा राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ऩे के लिए चंद्रास्वामी ने उन्हें चालीस करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव रखा था या नहीं? जब मुझे यह सब नहीं मालूम तो फिर यह मालूम होने का तो सवाल ही नहीं है कि नागार्जुन सागर स्रेयाप आयरन स्केंडल में क्या चंद्रास्वामी को महज 23 साल की उम्र में ही न्यायिक हिरासत में रहने का सौभाग्य मिल गया था?

पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव राजनीति में कितने बड़े संत थे, ये बाकी संत जानते होंगे। मैं तो इतना जानता हूं कि चंद्रास्वामी जैसे संत से उन दिनों नरसिंह राव को खासी ताकत मिलती थी और चंद्रास्वामी की सबसे बड़ी ताकत नरसिंह राव थे। राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ गांव से चल कर नेमिचंद्र जैन कोई यूं ही चंद्रास्वामी नहीं बन गए। उनका परिवार आंध्र प्रदेश जा कर न बस गया होता और वहां नरसिंह राव से नेमिचंद का संपर्क न हुआ होता तो वे भी लाखों जटाधारियों की तरह रेलवे के किसी प्लेटफॉर्म पर पड़े होते। इसलिए चंद्रास्वामी का यह चमत्कार तो आपको मानना ही पड़ेगा कि ललित नारायण मिश्र, यशपाल कपूर, चरण सिंह, राजनारायण, जगजीवनराम, नानाजी देशमुख और देवीलाल तक कौन है, जिससे उन्होंने कभी न कभी अपनी शागिर्दी न कराई हो। एक जमाना था कि कुर्सी पाने के लिए और अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश भर से अपने हवाई जहाज ले कर राजनेता चंद्रास्वामी के आश्रम में पहुंचते थे और हाथ जोड़े कतार में खड़े रहते थे। चंद्रास्वामी अब से तेरह-चौदह बरस पहले लंदन जाते थे तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉन मेजर उनसे मिलने को उत्सुक रहा करते थे और श्रीचंद हिंदूजा से ले कर सरोश जरीवाला तक बिचौलिए की भूमिका अदा करते थे। दिनेश पांड्या जैसे किसी हीरा व्यवसायी के निजी निमंत्रण पर अगर चंद्रास्वामी बैंकाक पहुंच जाते थे तो थाइलैंड की सरकार के बड़े-बड़े मंत्री उनकी अगवानी के लिए विमानतल पहुंचने की होड़ लगाया करते थे। अब से दस बारह साल पहले तक किसी सोमचाई चाईश्री चावला के लिए यह हिम्मत करना महंगा पड़ जाता था कि वह चंद्रास्वामी को विश्वास में लिए बगैर कर्नाटक की सरकार के साथ दस अरब रुपए के सौदे का सहमति पत्र हासिल कर ले।

मैंने चौदह साल पहले का वह वक्त नजदीक से देखा है, जब हमेशा हिम्मत से सराबोर रहने वाले राजेश पायलट ने चंद्रास्वामी को गिरफ्तार करने के निर्देश सीबीआई को दे दिए थे। नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। पायलट उनके आंतरिक सुरक्षा मंत्री थे। तब कानपुर की जेल में बंद बबलू श्रीवास्तव ने रहस्य उजागर किया था कि चंद्रास्वामी के दाऊद इब्राहीम से रिश्ते हैं। मुंबई में दाऊद के कराए बम विस्फोटों के बारूद की बदबू हवा में बाकी थी। बबलू का कहना था कि दीवान भाइयों--विपिन और संदीप—ने चंद्रास्वामी को दुबई में दाऊद से मिलवाया था और बाद में दाऊद ने ही चंद्रास्वामी को दुनिया के सबसे बड़े हथियार सौदागर अदनान खाशोगी से मिलवाया। जाहिर है कि 1995 के सितंबर महीने में तब हवा बेहद गर्म हो गई और पायलट ने सीबीआई से चंद्रास्वामी के खिलाफ कार्रवाई करने को कह दिया। चंद्रास्वामी के सबसे बड़े खैरख्वाह नरसिंह राव परेशान थे। चंद्रास्वामी अपने आश्रम में भीतर से सहमे और ऊपर से उबलते बैठे थे। मिलने वालों की कतार गायब थी। सितंबर के दूसरे सप्ताह के उस सूने शुक्रवार को नरसिंहराव का सिर्फ एक मंत्री चुपचाप चंद्रास्वामी से मिलने उनके आश्रम पहुंचा था। उस शुक्रवार की शाम आते-आते पायलट की गृह मंत्रालय से विदाई हो गई। उन्हें आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया और पर्यावरण मंत्रालय में भेज दिया गया। यह थी हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में संत-महात्माओं को सताने की सजा। शंकरराव चह्वाण गृह मंत्री थे। पायलट की गृह मंत्रालय से छुट्टी के बाद सीबीआई ने दिखाने के लिए दो-एक बार चंद्रास्वामी से पूछताछ की और बात आई-गई हो गई।

इसलिए दो दशक से भी ज्यादा वक्त से हवा में तैर रहे कई सवाल आज भी जिंदा हैं। सवाल है कि अदनान खाशोगी से चंद्रास्वामी की दोस्ती कैसे हुई थी? खाशोगी जब दिल्ली आए तो चंद्रास्वामी के आश्रम में उनसे कौन-कौन मिलने गए थे? बु्रनेई के सुल्तान से चंद्रास्वामी की ऐसी गहरी दोस्ती क्यों हो गई थी? पामेला बोर्डेस किस्से की सच्चाई क्या थी? भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में चंद्रास्वामी के किस-किस से क्या संबंध थे? इन तमाम सवालों के कुहासे में घिरे चंद्रास्वामी के राम-राज्य स्थापना अभियान से आपको चिंता होती हो या नहीं, मुझे तो होती है। चंद्रास्वामी भले कितने ही कमज़ोर हो गए हों, मेरे जैसों को तो वे अब भी चुटकियों में उड़ा सकते हैं। इसलिए अगर मेरी यह चिंता मेरे लिए मुसीबत बन जाए तो आप चिंता मत करना।

4 comments:

अनोप मंडल said...

प्रिय पंकज जी आप निःसंदेह नहीं जानते कि ये तो राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य का वंशज है। यदि आप को ये किसी दुराग्रहवश करा गया आरोप प्रतीत हो तो जरा जैनियों के बारे में गहराई से देखिए आप पाएंगे कि उनके द्वारा दिखाई जा रही अहिंसा मात्र नाटक है और कुछ नहीं। ये धूर्त जब जैन है तो हिंदुओं के आराध्य भगवान श्री राम से संबंधित बात में क्यों दिलचस्पी ले रहा है। सत्यतः ये इन राक्षसों की साजिश है ये हिंदु संगठनों में उच्च पदों पर पैसे के बल पर चढ़ कर जम जाते हैं और उन्हें कभी ईसाइयों से कभी मुसलमानों से लड़ाने की जुगत करते रहते हैं।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

Chashmadeed said...

I disagree only with one part of your comment that says Jain philosophy of ahimsa is only a drama and when Chandraswami is a Jain, why is he taking interest in Hindu lors Bhagwan Ram? I find this thought process also dangerous for the country. Bhagwan aapko bhi sanmati de!

INDIANBUZZ said...

Dear Pankaj Bhai,
I read u r blog. u have sharp pen and mind. keep it alive.congrats, how congress will use u r mind and pen, no body knows. Pl don't wait for 24 years in congress, to be asked to create some thing which will be beyond u r capacity at that time. Politics is the biggest tool for Social Change, let us see how u fit u r self in the greed (all kind) stricken polity of the country. keep it up. u have to go long way before sleep. once again congrats.
yours
Anil Tyagi

Ashok M Wankhade said...

Dear Pankaj Bhai,

Yes, this is what people like me were waiting for. Definately not your entry into Congress but your skill to handle pen.

Lot of people talk lot of things about you, they talk good they talk bad. But one thing I know that they all discuss you. Now they will only discuss your writing, your views and your language.

Bahot dino ke bad Pankaj brand Hindi padhane ko mili. I pray god to give you enogh strength to make you write more and more for thousands of fans like me.

Congrats.

Ashok Wankhade
(aapka swayambhoo chota bhai)