नरेंद्र भाई मोदी से मेरी पहली मुलाक़ात 1996 की शुरुआत में हुई थी और पक्का है कि वह उन्हें याद नहीं होगी। वे भाजपा के राष्ट्रीय सचिव थे। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का ज़िम्मा था उनके पास। मैं नवभारत टाइम्स का विशेष संवाददाता था। भाजपा कवर तो नहीं करता था, लेकिन उत्साहीलाल की तरह हर ज़गह घूमता था, सो, मोदी से ले कर गोविंदाचार्य तक सबसे मिलता रहता था। रायसीना रोड पर रह रहे अटल बिहारी वाजपेयी भी अपने शयन कक्ष में चाय पिला देते थे और लालकृष्ण आडवाणी से ले कर मुरली मनोहर जोशी और संघ-प्रमुख रज्जू भैया भी मुझे पहले नाम से बुला लेते थे, लेकिन अब ये सब बातें मोएन-जो-दड़ो का बस्ता हैं। विवादित ढांचा तोड़ा जा चुका था। मैं और ये सब उत्तर-दक्षिण धु्रव थे। मोदी तब तक रथ-यात्रा आयोजन के महा-रथी बन चुके थे, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रथ पर सवार होने का उन्हें दूर-दूर तक अंदाज़ नहीं था। मोदी तब ऐसे ऐंठे हुए नहीं रहा करते थे। अपने छोटे-से कमरे में बातचीत करते थे तो भावनाओं में डूबे मनुष्य ज़्यादा लगते थे। सत्ता ने उनमें यह ऐंठ पैदा की है। संघ के प्रचारक तो वे शुरू से थे और समाज के एक विशेष तबके के बारे में उनकी राय भी वही थी, जो एक संघी की होती है, लेकिन गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी का पराक्रम आसमान छूने लगा। 2002 के दंगों के बाद तो अपनी सफाई में नरेंद्र भाई की दलीलों ने उन्हें जानने वाले सभी को चैंका दिया। अटल जी को भी। हम जैसे तो चीज़ ही क्या थे? मुझ जैसों को पहचानना तो मोदी कब का छोड़ चुके थे और 2004 में जब चैदहवीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे थे तो गुजरात में मैं अपने एक पत्रकार मित्र के साथ घूम रहा था। मोदी की सभाएं सुनीं। दो-तीन ज़गह मंच से उतरते मोदी ने मेरे मित्र से तो कंधे पर हाथ रख कर बात की, लेकिन मुझे पहचानने से इनकार कर दिया। मोदी तो मुझे भूल ही चुके थे, तब से अब तक मैं भी मोदी को पहचान नहीं पाता हूं। भाजपा तो पहले भी थी। 2 से 180 तक पहुंची भी बाकी तमाम वैचारिक ताक़तों के होते हुए ही थी। प्रधानमंत्री तो अटल जी भी बने थे। लेकिन तब मानने वाले अटल जी को नहीं, भाजपा की विचारधारा को देश के लिए खतरा मानते थे। आज फ़र्क यह है कि लोगों को भाजपा नहीं, नरेंद्र मोदी बड़ा खतरा नज़र आते हैं। मोदी कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते हैं। मैं भाजपा-मुक्त भारत की बात नहीं करता। लेकिन मैं मोदी-प्रवृत्ति मुक्त भारतीय राजनीति का आह्वान करना चाहता हूं। मोदी-मुक्त भाजपा का सपना तो भाजपा में ही बहुत-से लोग देख रहे हैं। मेरा सपना ज़रा बड़ा है--मोदी-प्रवृत्ति मुक्त राजनीति।
Friday, July 31, 2015
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