Friday, February 26, 2016

मॉं दुर्गा स्मृति ईरानी को वैचारिक परिपक्वता प्रदान करें

मैं तो स्मृति ईरानी का कायल हो गया। उन्होंने आव देखा न ताव, लोकतंत्र के मदिर-संसद-को अपनी शाब्दिक अदाकारी की रंग-भूमि बनाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। सब भूल गईं। 2004 के दिसंबर महीने के दूसरे हफ़्ते का वह रविवार भी भूल गईं, जब उन्होंने गुजरात के सूरत में, तब तक भूखे-प्यासे रहने का ऐलान कर डाला था, जब तक कि गुजरात के तब के मुख्यमंत्री इस्तीफ़ा नहीं दे देते। पंजाबी पिता और बंगाली मॉं की संतान स्मृति गुस्से-से आग-बबूला थीं कि गुजरात में घटी घटनाओं के बावजूद तीन साल से नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे हुए हैं और नतीज़तन खुद वे चांदनी चौक से लोकसभा का चुनाव हार गईं। मुझे अच्छी तरह याद है कि तब लालकृष्ण आडवाणी और गोपीनाथ मुंडे को स्मृति को मनाने के लिए किस तरह रात-दिन एक करने पड़े थे। अटल बिहारी वाजपेयी के कथनों पर लोकसभा में इस बुधवार को अपनी सियासत का नगाड़ा बजाने वाली स्मृति की स्मृति से यह तथ्य धुल गया कि 2002 के अप्रैल महीने के शुरुआती सप्ताह के बुधवार को वाजपेयी जी ने अहमदाबाद में देर शाम क्या कहा था? मैं तब नवभारत टाइम्स में था। मुझे आज तक याद है कि वह 4 अप्रैल का दिन था और अपनी बगल में खिसियानी हंसी हंसते मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में अटल जी ने अहमदाबाद के विमानतल पर पत्रकारों से बात की थी। एक महिला संवाददाता के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि ”चीफ मिनिस्टर के लिए मेरा एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें।“ फिर उन्होंने एक अंतराल लिया और बोले-”राजधर्म। यह शब्द काफी सार्थक है। मैं उसी का पालन कर रहा हूं, पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिए, शासक के लिए, प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न संप्रदाय के आधार पर।” और, आज जेएनयू में, हैदराबाद विश्वविद्यालय में, क्या हो रहा है? स्मृति तो मिस इंडिया बनते-बनते रह गईं और अब मंत्री हैं, इसलिए अपनी जाति बताने की चुनौती देते हुए संसद में दहाड़ सकती हैं, लेकिन ग़रीब रोहित वेमुला क्या करता? बेचारा कन्हैया कुमार क्या करे? रोहित की जाति को चुनौती देने वाले खुद के मंत्रिमंडलीय सहयोगियों पर कब दहाड़ेंगी स्मृति? आंसू बहा रही कन्हैया की मॉ को न्याय दिलाने के लिए कब भीतर से टूटेंगी स्मृति? हाथ नचाने से, गला भर लेने से और सूक्तियां सुनाने से देश नहीं चला करते। इस मार्च की 23 तारीख़ को स्मृति पूरे 40 बरस की हो जाएंगी। वह हमें राष्ट्र-वाद सिखाने वाले सर्वोच्च प्रतीकों में से एक भगतसिंह की शहादत का दिन है। मॉं दुर्गा स्मृति ईरानी को अज्ञान से ज्ञान और अंधकार से प्रकाश की तरफ़ अपना सफ़र शुरू करने की वैचारिक परिपक्वता प्रदान करें।

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