इस बार राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उन्हीं के तीलीलीली अंदाज में जो मूसल बरसाए, सो तो बरसाए ही, राहुल की बातों ने भारत के राजनीतिक दर्शनशास्त्र के बारे में गहरी होती उनकी समझ की ठोस झलक भी दिखाई। अब तक अपने भाषणों को दस-बारह मिनट से लंबा न खींच पाने वाले राहुल पिछले कुछ महीनों से जनसभाओं के मंचों पर आधा घंटे आराम से जमे रहने लगे हैं और कांग्रेस के जन-वेदना सम्मेलन की शुरुआत और अंत में तो कुल मिला कर वे एक घंटे से भी ज़्यादा समय तक अपनी बातों को विस्तार से समझाते रहे। मोदी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यशैली पर राहुल के तीरों ने छप्पन इंच की छाती में इतने गंभीर घाव पहले नहीं किए होंगे। अब तक राहुल को गुस्से से तिलमिलाते देखने पर हंसने वाले अब राहुल की हंसी पर गुस्से से तिलमिला रहे हैं।
राहुल ने जब-जब अपने भाषण में चुटकियां लीं तो एक संजीदा संदेश भी छोड़ा। उन्होंने मोदी की उछल-कूद वाली शैली पर निशाना साधा और बताया कि कैसे ढाई साल पहले नरेंद्र भाई आए और उन्होंने पूरे देश के हाथ में झाड़ू पकड़ा दिया। फैशन के चलते चार-छह दिन प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों ने झाड़ू लगाने के फोटो-अवसर मीडिया को मुहैया कराए और यह भी नहीं देखा कि खुद झाड़ू ठीक से पकड़े भी हैं कि नहीं। राहुल ने बताया कि कैसे फिर मोदी मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और कनेक्ट इंडिया की एक-एक डाल पर कूदते रहे और इनमें से किसी का भी आज तक कोई नतीजा नहीं निकला। राहुल बोले कि जब नरेंद्र भाई ने इंडिया गेट पर योग किया तो ठीक से पद्मासन भी नहीं लगा पाए। फिर सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद प्रधानमंत्री ने भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पर झाड़ू फेर दी–बिना सोचे-समझे विमुद्रीकरण कर डाला और पूरे मुल्क को कतार में खड़ा कर दिया।
नोट-बंदी पर राहुल ने विस्तार से अपनी बात समझाई। चुटकियां लेते हुए भी और संजीदगी के साथ भी। राहुल ने कहा कि विमुद्रीकरण की पूरी अवधारणा की बुनियाद ही यह है कि बड़े नोटों को चलन के बाहर किया जाए। लेकिन मोदी तो हज़ार-पांच सौ के नोट बंद करने के बाद दो हज़ार रुपए का नोट लेकर आ गए। दर्द भरी मुस्कान के साथ राहुल ने कहा कि इससे पहले भारत के किसी भी प्रधानमंत्री का अंतरराष्ट्रीय जगत में ऐसा उपहास नहीं हुआ, जैसा विमुद्रीकरण के बाद मोदी का। दुनिया का कोई बड़ा अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री ऐसा नहीं है, जिसने इस फ़ैसले को विवेकहीन और अमानवीय न बताया हो और इस क़दम से आने वाली आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी के खतरों से तो भारतवासियों का साबका अब पड़ेगा।
राहुल ने वे परतें भी उधेड़ीं, जिनमें नोट-बंदी के लिए बताई गई वजहों–आतंकवाद, काले धन और नकली नोट–की असलियत छिपी है। उन्होंने बताया कि किस तरह इन तीनों बिंदुओं पर नोट-बंदी की नाकामी के बाद मोदी अपनी लक्ष्य-पताका बदलते रहे और आख़िरकार बोले कि नगदी-विहीन समाज की स्थापना करनी है। राहुल ने कहा कि पता नहीं नरेंद्र भाई किस दुनिया में रह रहे हैं? वे शायद यह नहीं जानते कि आज भी जर्मनी में 80 फ़ीसदी लेनदेन नगद होता है और अमेरिका में 46 प्रतिशत। इतनी उन्नत अर्थव्यवस्थाएं जब इक्कीसवीं सदी में अपने देशों को नगदी-विहीन नहीं कर पाईं तो साढ़े छह लाख गांवों वाला भारत चंद लाख बैंकों के ज़रिए ऐसा कैसे कर लेगा? विमुद्रीकरण की भौतिक बदनीयती की तरफ इशारा करने के बाद राहुल ने मोदी-मानस पर सीधा हमला किया और बताया कि किस तरह यह क़दम समाज में भय फैलाने के उस दर्शन का नतीजा है, जो सदियों से ग़रीबों और वंचितों के शोषण का माध्यम बना हुआ है।
हर महीने अपने प्रधानमंत्री के मन की बात की यांत्रिकता से गुजरने के बाद कांग्रेस के जन-वेदना सम्मेलन के आरंभिक और समापन सत्र में राहुल की बातों की प्राकृतिकता ने जिसे भीतर तक न भिगोया हो, उसकी बुद्धि के खुरदुरेपन पर मैं क्या कहूं! लेकिन मैं तो यह देख कर चमत्कृत था कि जिन राहुल गांधी को लोग सियासत के किनारे बैठ कर सूर्य-स्नान करने वाला समझते थे, वे राजनीतिक दर्शन की नदी में इस बीच इतने गहरे पानी पैठ चुके हैं कि अब उन सभी के चेहरों पर अवाक्-भाव है। जिस सादगी से राहुल ने भारतीय परंपरा के शाश्वत अभय-दर्शन की व्याख्या की और बेहद सलीके से ‘डरो मत’ का ताबीज देश की बाहों पर बांध दिया, वह पांडित्य से लबरेज़ बड़े-से-बड़ा कर्मकांडी भी नहीं कर सकता था। नरेंद्र मोदी हमारे समय के सबसे बड़े सियासी कर्मकांडी हैं, लेकिन इस बुधवार राहुल ने अपनी बैष्णवी शैली से मोदी की आसुरी आक्रामकता को मीलों पीछे छोड़ दिया।
राहुल ने बताया कि किस तरह सदियों से दो विचारधाराओं का संघर्ष दुनिया देख रही है, भारत देख रहा है। एक विचारधारा है, जो कहती है कि डरो मत। किसी से भी मत डरो, अपने अतीत से मत डरो, अपने वर्तमान से मत डरो, अपने भविष्य से मत डरो। हर तरह के डर को मिटाने की इस विचारधारा का प्रतिनिधित्व कांग्रेस करती है। दूसरी विचारधारा है, जो कहती है डरो। भय फैलाने से होने वाले फ़ायदे की फ़सल काटने वाली इस विचारधारा का प्रतिनिधित्व भाजपा और उसका मातृ-संगठन करते हैं। राहुल ने एक निर्भय समाज की रचना के लिए सामाजिक हित के कांग्रेसी फै़सलों को इस दर्शन में पिरोया और बताया कि महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना, भोजन का अधिकार, भूमि अधिग्रहण क़ानून और सूचना का अधिकार किस तरह ‘डरो मत’ के राष्ट्र-गान हैं और कैसे इन सभी फ़ैसलों की अवहेलना कर मोदी-राज में भारतीय मानस को अज्ञात भय की खाई के हवाले करने की साज़िशें रची जा रही हैं। विमुद्रीकरण इस डर को और गहरा करने वाला वह हंटर है, जिसके ज़रिए भारत का प्रधानमंत्री अपने देशवासियों से कह रहा है कि मुझसे डरो। मैं और सिर्फ़ मैं ही तुम्हें सुनहरा भविष्य दे सकता हूं। मैं कल क्या करूंगा, उसे छोड़ों, लेकिन अपना वर्तमान मुझे सौंप दो।
जब अपनी इसी रौ में राहुल ने डर के मौजूदा माहौल में समाचार-माध्यमों को भी ‘डरो मत’ का मंत्र सुनाया तो वे अपने सियासी-तबलावादन के चरम पर थे। उन्होंने मीडिया की मजबूरियों का अहसास करते हुए आहिस्ता से यह भी बता दिया कि कांग्रेस समाचार माध्यमों की स्वतंत्रता का कितना सम्मान करती रही है। राहुल ने जब मीडिया से मुख़ातिब हो कर कहा कि आप मेरे बारे में चाहे जो लिखो, जो कहो, मैं कभी आपको डराऊंगा नहीं, क्योंकि मैं आपसे नफ़रत नहीं करता तो ढाई बरस का मोदी-काल सबकी आंखों में तैर गया। दशकों के खून-पसीने से खड़े हुए लोकतांत्रिक संस्थानों की बुनियाद में आज पड़ रहे मट्ठे के खिलाफ़ जनसंचार माध्यमों को उनकी जिम्मेदारियों की याद राहुल ने जिस अंदाज़ में दिलाई, वह उस प्रतिबद्धता से उपजता है, जिसके बीज भारत के गर्भ-गृह में हैं।
जिस दौर में पूंजी से लेकर नरेंद्र भाई के सत्ता-तंत्र तक सब अपनी मनमर्जी का देश और समाज गढ़ने में लगे हैं, देश की जनता को मूक-उपभोक्ता और शासित बना कर रखने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं, मीडिया की पक्षधरता लोकतंत्र से उलटी दिशा में ठेली जा रही है, उस दौर में राहुल गांधी का ताजा सार्थक हस्तक्षेप पूरी सियासत को नए सिरे से परिभाषित करने का माद्दा रखता है। दूसरे तो जो करेंगे, सो, करेंगे, हम उम्मीद करें कि राहुल के हमजोली इस नदी को रास्ते में नहीं सूखने देने का संकल्प लेंगे। (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।)
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