Monday, March 14, 2016

जमुना जी का दर्द

भला हो श्री श्री रविशंकर का कि भारत की राजधानी में तीन दिन का सम्मेलन कर उन्होंने विश्व की संस्कृति को एक कर दिया। सात एकड़ का मंच बनाया। पैंतीस हज़ार कलाकारों को उस पर नचाया-गवाया। गाजे-बाजे के साथ परदेसी भी आए। देसी भी आए। जो देसी-परदेसी बुलावे को टाल गए, उनका दुर्भाग्य कि श्री-श्री की लीला का मंचन देखने से महरूम रह गए। तमिलनाडु के पापनाशम् गॉव में साठ साल पहले आर.एस. वेंकट रत्नम और विशालक्ष्मी के घर रविशंकर ने जन्म न लिया होता तो भारतीय संस्कृति को दुनिया अब तक भूल ही गई होती। यह तो श्री-श्री के आर्ट ऑफ लिविंग को सुध आ गई, वरना दिल्ली में पत-नाला बन गई जमुना जी अपने भाग्य को आज भी रोती रहतीं। ग्रीन ट्रिब्यूनल का कॉलर पकड़ कर, ज़ुर्माने को अंगूठा दिखा कर, जमुना जी की छाती पर मूंग दलने की हिम्मत क्या और किसी की थी? ये तो गनीमत है कि नरेंद्र भाई को श्री-श्री तब से जानते हैं, जब हमारे प्रधानमंत्री संघ के प्रचारक थे। 16 साल पहले न्यू यॉर्क में देखा-देखी हो गई थी तो गुजरात का मुख्यमंत्री बनते ही श्री-श्री ने संपर्क बढ़ा लिया। फिर नितिन गड़करी की क़िताब का विमोचन करते-करते श्री-श्री संघ के प्रशिक्षण शिविरों के मुख्य अतिथि तक की स्थिति को प्राप्त हो गए और मोहन भागवत के मुरीद बन गए। यह सब विश्व-संस्कृति को एकाकार करने में आज काम आया, वरना इस ज़ालिम दुनिया में कौन किसको पूछ रहा है? अपने नरेंद्र भाई और आरएसएस को आजकल श्री-श्री इसलिए ज़्यादा पसंद आ रहे हैं कि वे रामदेव से ज़्यादा कुलीन हैं, अंतर-राष्ट्रीय हैं और कूद-फांद करने के बजाय गोताखोरी में यक़ीन रखते हैं। रामदेव का तरह श्री-श्री का भी शेंपू, तेल, साबुन, टूथपेस्ट, सौंदर्य प्रसाधनों, जड़ी-बूटियों, शक्तिवर्द्धक औषधियों, वगैरह-वगैरह का हज़ारों करोड़ का कारोबार है। पुस्तकों, भजन-मंत्र सीडी और आयोजनों के ज़रिए भक्त-जन-धन जोड़ने का लंबा-चौड़ा काम है। शिक्षण संस्थान बनाने-चलाने का अनवरत सिलसिला उनके ज़िम्मे है। श्री-श्री का आधा पांव देश में रहता है और डेढ़ विदेश में। इतनी व्यस्तता में से अपना अमूल्य समय निकाल कर एक तो उन्होंने जमुना जी का दर्द समझा और आंॅसू पोंछने आए और आप हैं कि उन पर ही उंगली उठा रहे हैं। इसीलिए तो मृत्युलोक के तुच्छ प्राणियों के लिए इन दिनों कोई महापुरुष कुछ करना नहीं चाहता।

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