Wednesday, May 9, 2018

इस सादगी पे कौन न मर जाए, ऐ खुदा!



पंकज शर्मा

    इस बुधवार हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी ने लंदन में अपनी ज़ुबानी-लच्छेदारी का जो जलवा दिखाया, उसने मुझे तो झकझोर कर रख दिया। मैं अब तक अपना सिर खुजाते हुए सोच रहा हूं कि अगर नरेंद्र भाई की आत्मा इतनी पवित्र है और चार बरस में उन्होंने ऐसे-ऐसे पुण्य-कर्म किए हैं तो भारत भर में हाहाकार क्यों मचा हुआ है? जिस तरह लंदन में सभागार के भीतर तालियां पीट रहे प्रायोजित-दीवानों और भाट-भूमिका का कर्तव्य-पालन कर रहे अर्ध-कवि प्रसून जोशी को बाहर सड़कों पर हो रही नारेबाज़ी सुनाई नहीं दे रही थी, उसी तरह “रॉयल पैलेस” में हाथ मिलाने से अभिभूत बैठे हमारे प्रधानमंत्री को खुद के देश की हवा में तैर रही छटपटाहट का कोई अहसास नहीं है।
    वरना क्या कारण है कि विपक्ष तो विपक्ष, नरेंद्र भाई अपने पितृ-संगठन के शीर्ष-पुरुष की चिंताओं तक की चिंता नहीं कर रहे हैं; उन्हें अपने निर्माता लालकृष्ण आडवाणी के आंसू दिखाई नहीं दे रहे हैं; उन्हें अपने निर्देशक मुरली मनोहर जोशी और यशंवत सिन्हा की आहें सुनाई नहीं दे रही हैं; उन्हें अरुण शौरी और शत्रुध्न सिन्हा जैसे अपने हमजोलियों की आवाजें सुनाई नहीं देती हैं; और, उन्हें भारतीय जनता पार्टी के दलित सांसदों के मन की बात से भी कोई लेना-देना नहीं है? 
    लंदन में संत-मुद्रा में प्रधानमंत्री बोले कि अपने तीन बरस के लड़के को पीठ पर लादे पहाड़ चढ़ती लड़की को अगर इसलिए कोई बोझ महसूस नहीं होता कि वह लड़का उसका भाई है तो फिर सवा सौ करोड़ देशवासी भी तो मेरा परिवार हैं। वाह, वाह! इस सादगी पर कौन न मर जाए, ऐ खुदा!
     “भारत की बात, सबके साथ” करते हुए चारण-गति को प्राप्त हो गए प्रसून जोशी ने नरेंद्र भाई के कसीदे पढ़े और नरेंद्र भाई ने उनके। एक बानगी देखिए।
    चारणः मैं ने भारत के बारे में लिखा था कि धरती के अंतस में जो गहरा उतरेगा, उसी के नयनों में जीवन का राग दिखेगा। जिन पैरों में मिट्टी होगी, धूल सजेगी, उन्हीं के संग-संग इक दिन सारा विश्व चलेगा। रेलवे स्टेशन से आप का सफ़र शुरू होता है और आज रॉयल पैलेस में आप ख़ास मेहमान बने। इस सफ़र को कैसे देखते हैं आप?
    प्रधानमंत्रीः आप तो कविराज हैं। ज़िंदगी का रास्ता बड़ा कठिन होता है। रेलवे स्टेशन मेरी अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी की कहानी है, मेरी ज़िंदगी का स्वर्णिम पृष्ठ है, जिसने मुझे जीना सिखाया, जूझना सिखाया। लेकिन रॉयल पैलेस मेरी कहानी नहीं है। लोकतंत्र में जनता-जनार्दन, जो ईश्वर का रूप है; अगर वह फ़ैसला कर ले तो फिर एक चाय बेचने वाला भी उनका प्रतिनिधि बन कर रॉयल पैलेस में हाथ मिला सकता है।
    चारणः नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री जब एकमय हो जाते हैं, एकरस हो जाते हैं, सब मिल जाता है, कैसा लगता है?
    प्रधानमंत्रीः मैं तो आदिशंकर के अद्वैत सिद्धांत से बहुत ज़माने से जुड़ा हुआ हूं। तो मैं जानता हूं कि जहां मैं नहीं, तू ही तू है। जहां द्वैत नहीं, वहां द्वंद्व नहीं। मैं अगर अपने भीतर के नरेंद्र मोदी को ले कर जाता हूं तो शायद मैं देश के साथ अन्याय कर दूंगा। देश के साथ न्याय के लिए मुझे अपने आपको भुला देना होता है, मिटा देना होता है। स्वयं खप जाना होता है। तब जा कर वह पौधा खिलता है। बीज भी तो आख़िर खप ही जाता है, जो वटवृक्ष को पनपाता है।
    चारणः बदलाव अपने साथ एक और चीज़ ले कर आता है। अधीरता, आतुरता, बेसब्री। पहले अगर हम दो क़दम चलते थे तो अब कई गुना ज़्यादा चल रहे हैं। फिर भी बेसब्री? इसे कैसे देखते हैं आप?
    प्रधानमंत्रीः जिस पल संतोष का भाव पैदा हो जाता है तो ज़िंदगी आगे नहीं बढ़ती है। हर आयु में, हर युग में, हर अवस्था में, कुछ न कुछ नया करने का, नया पाने का मक़सद गति देता है। बेसब्री तरुणाई की पहचान है। एक कालखंड था, जिसमें हम निराशा के गर्त में डूब गए थे। आज से 15-20 साल पहले लोग अपेक्षा करते थे कि अकाल आ जाए और हमें मिट्टी के गड्ढे खोदने का काम मिल जाए। एक कच्ची सड़क बन जाए। आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के मन में उमंग, उत्साह, आशा, अपेक्षा उभर कर बाहर आ रही है।
    चारणः लोग तो बेसब्र हो जाते हैं, लेकिन क्या कभी आप भी बेसब्र होते हैं? सरकारी कामकाज के तरीके से? कि चीजें उस गति से नहीं चल रहीं, जिस गति से आप चाहते हैं?
    प्रधानमंत्रीः मुझे नहीं पता था कि कवि के भीतर भी कोई पत्रकार बैठा होता है। मैं मानता हूं कि जिस दिन मेरी बेसब्री ख़त्म हो जाएगा, मैं देश के काम नहीं आऊंगा। मेरी बेसब्री मेरी ऊर्जा है। मैं दूसरे प्रकार का इंसान हूं। अगर एक गिलास आधा भरा हुआ है तो एक व्यक्ति कहेगा कि वह आधा भरा है, दूसरा कहेगा कि वह आधा खाली है। मुझे कोई पूछता है तो मैं कहता हूं कि वह आधा पानी से भरा है और आधा हवा से भरा है।
    फिर दिल्ली से प्रियंका वर्मा ने सवाल पूछा। प्रसून ने सवाल का भाव समझाया तो मोदी ने कहा कि प्रियंका ने बहुत अच्छा सवाल पूछा है। जवाब में बताया कि कैसे जिस तरह गांधी ने आज़ादी को जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया था, वे भी राष्ट्र-निर्माण को जन-आंदोलन बना रहे हैं। बताया कि लोकतंत्र भागीदारी के बिना नहीं चल सकता। संसद के बजट-सत्र में नरेंद्र भाई यह बात पता नहीं क्यों भूल गए?
    मयूरेश ओझानी ने नरेंद्र भाई के पसंदीदा विषय सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल पूछा। उन्होंने तो कम शब्दों में सवाल पूछ डाला, मगर मोदी जी इतने भीग गए कि जवाब में बोले कि आप की देहभाषा मेरे मन को छू गई है। उन्हें लंका छोड़ते समय राम-लक्ष्मण संवाद की याद आ गई। फिर उन्होंने विस्तार से सब बताया। छप्पन इंच की छाती यह ऐलान करते फूल गई कि यह मोदी है, पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना जानता है। अपनी नेकदिली के बारे में भी बताया कि मैं ने अफ़सरों से कहा कि आप हिंदुस्तान को पता चले, उससे पहले; मीडिया वहां पहुंचे, उससे पहले; पाकिस्तान की फ़ौज को फोन कर के बता दो कि आज रात हमने ये किया है। ये लाशें वहां पड़ी होंगी, तुम्हें समय हो तो जा कर के ले आओ। जाहिर है कि खूब तालियां बजीं।
    नरेंद्र भाई ने लंदन में बैठे भारतवासियों को बताया कि उनके पास प्रामाणिकता की पूंजी है। सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्यार की पूंजी है। कहा कि मुझ से ग़लतियां हो सकती है, लेकिन मैं ग़लत इरादे से कभी काम नहीं करूंगा। मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों पर कोई कीचड़ नहीं उछाल रहा, कोई गालियां नहीं दे रहा। मैं अकेला हूं, झेलता रहता हूं। हम सब कवि नहीं बन सकते। वह तो प्रसून ही बन सकते हैं। लेकिन मैं ने कभी लिखा था। उस कविता के पूरे शब्द मुझे याद नहीं हैं लेकिन कुछ ऐसा था कि लोग मुझे पर जो पत्थर फैंकते हैं, मैं उनसे ही सीढ़ी बना लेता हूं और उस पर चढ़ कर आगे चलता हूं। नरेंद्र भाई की इस बात पर मैं भी रीझते-रीझते बचा। और अंत में प्रसून ने सांप पर एक लंबी कविता सुनाई, जिसका सिर-पैर मैं अब भी बैठा-बैठा खोज रहा हूं। 

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