Monday, May 28, 2018

बदन की होड़ करते प्रधानमंत्री का लज्जित देश



पंकज शर्मा

    हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी सचमुच रुस्तम हैं। न होते तो विराट कोहली की शारीरिक-तंदुरुस्ती की चुनौती मंजूर कैसे करते? विराट का तो काम ही अपना शरीर फिट रखने का है। उनका सारा शौक या कारोबार, जो भी आप समझें, टिका ही इस पर है कि उनका शरीर कितना फिट है। इसलिए अपनी फिटनेस पर गर्व करते हुए उन्होंने अपना व्यायाम-वीडियो जारी किया और दो लोगों को चुनौती दी कि वे भी अपने फिटनेस-प्रमाण पेश करें। एक, पत्नी अनुष्का और दूसरे, प्रधानमंत्री मोदी। अनुष्का ने तो चुनौती स्वीकर करने में कोई बेताबी नहीं दिखाई, मगर नरेंद्र भाई ने आनन-फानन में ट्वीट कर दिया कि उन्हें चुनौती मंजूर है।
    बदन की तंदुरुस्ती अहम है। उस पर गर्व करने का किसी को भी हक़ होना चाहिए। अगर हमारे प्रधानमंत्री का बदन थुलथुल नहीं हैं तो मुझे भी इसका गर्व है। विराट उन्हें चुनौती देने का बचकानापन करें, इसके लिए मैं उन्हें इसलिए माफ़ करता हूं कि वे फिटनेस को जिम से आगे की चीज़ समझने का माद्दा अगर नहीं रखते हैं तो कोई बात नहीं। मगर उनकी चुनौती की गेंद को नरेंद्र भाई उसी अदा में हुलस कर लपक लें तो मैं इसकी कैसे अनदेखी कर दूं? हमारे प्रधानमंत्री को तो मालूम होना चाहिए कि तंदुरुस्ती का अर्थ महज भुजाओं, कंधों और छाती की मांसपेशियां बनाना नहीं है। सिक्स-पैक एब्स बनाना भर नहीं है। यह तो व्यक्ति की समूची खै़रियत से जुड़ा मसला है। मन की शांति के बिना कोई फिटनेस, फिटनेस नहीं। फिटनेस तो गतिशील रचनात्मक स्थिति है। सो, सिर्फ़ बदन की होड़ में विराट से पंजा लड़ाने को फटाफट तैयार हो जाने वाले प्रधानमंत्री को देख कर मुझे तो भारतवर्ष के क्षितिज पर बड़े-बड़े सवालिया निशान तैरते दिखाई देने लगे हैं।
    विराट-प्रसंग के बाद से मैं भीतर-ही-भीतर लज्जित महसूस कर रहा हूं। मेरा सिर ऐसे झुका हुआ है, जैसे कभी-कभी हमारा राष्ट्रीय ध्वज झुकता है। मेरी आंखें, लगता है, सदा के लिए नीची हो गई हैं। मालूम नहीं कि नरेंद्र भाई का व्यायाम-वीडियो जारी होने के बाद भी मेरी पलकें उठने की हिम्मत करेंगी या नहीं। मैं मानता हूं कि हमारे प्रधानमंत्री का बदन अमेरिका के मुखिया डोनाल्ड ट्रंप को मीलों पीछे छोड़े हुए है, चीन के शी जिंगपिंग को मात देता है और रूस के व्लादिमीर पुतिन के बदन की टक्कर का है। यह नरेंद्र भाई के वर्षों के सूर्य-नमस्कार का चमत्कार है। अपनी इस धरोहर पर नाज़ करने का उन्हें हक़ है। लेकिन भारत का प्रधानमंत्री अगर अपना बुनियादी काम करने के बजाय शारीरिक सौष्ठव के प्रदर्शन की होड़ में मंच पर उतरने लगे तो मेरा मन तो इतना झेलने से इनकार कर रहा है।
    चार साल पहले जब नरेंद्र भाई ने दिल्ली के इंद्रासन को अपना लक्ष्य बनाया था, तो बिना किसी के दिए, कई चुनौतियां खुद ही स्वीकार कर ली थीं। बोले थे कि सब का साथ लूंगा और सब का विकास करूंगा। बोले थे कि विदेशों में पड़ा खरबों काला रुपया सौ दिनों में वापस ले आऊंगा। बोले थे कि हर बरस दो करोड़ लोगों को रोज़गार दूंगा। बोले थे कि किसानों को उनकी उपज के लिए लागत से दुगना दाम दूंगा। बोले थे कि ग़रीब को महंगाई का निवाला नहीं बनने दूंगा। बोले थे कि दुश्मन आंख दिखाएगा तो उसकी आंख निकल लूंगा और एक सिर के बदले दुश्मन के दस सिर काट कर भारत माता के चरणों में डाल दूंगा। बोले थे कि गंगा का पुत्र हूं और अपनी गंगा मैया का आंचल चकाचक साफ कर दूंगा। बोले थे कि नोट बंदी का कष्ट पचास दिन झेल लो, उसके बाद भी अच्छे दिन न आएं तो मुझे जो चाहो, सज़ा देना। 
    चार साल बाद भी सारी चुनौतियां नरेंद्र भाई के कंधे पर बेताल की तरह वैसे ही लटकी हुई हैं। वे उनमें से एक का भी निपटारा नहीं कर पाए हैं। सूर्योदय से पहले थोड़े-बहुत दंड उन्होंने इन चुनौतियों से निपटने के लिए भी पेले होते तो क्या भारत का सिर इतना झुका दिखाई देता? 2014 के चुनाव में आंख बंद कर अपना वोट नरेंद्र भाई की झोली में डाल आए लोग पता नहीं कितने महीनों से चिल्ला-चिल्ला कर पूछ रहे हैं कि इन चुनौतियों का क्या हुआ? लेकिन विराट की चुनौती पर जवाबी-ट्वीट में एक लमहे की भी देरी न करने वाले हमारे प्रधानमंत्री जनता के सवालों का जवाब देने की कोई परवाह नहीं कर रहे। वे विराट से संवाद करते हैं, मगर जनता से सिर्फ़ एकालाप। हम सब हर महीने नरेंद्र भाई के मन की अंटशंट बात सुनें, मगर वे हमारे मन का सच्चा दर्द सुनने के लिए प्रधानमंत्री थोड़े ही बने हैं।
    विराट कोहली जिनकी आंखों के तारे हैं, उनकी आंखों को सलाम! मुझे तो उनकी अहंकारी उद्दंडता के किस्से तब से याद हैं, जब वे अंडर-नाइनटीन क्रिकेट खेला करते थे। छह साल पहले सिडनी में मैच के दौरान दर्शकों की अवमानना में उनकी दिखाई उंगली जिन्हें भूलना हो, भूलें। पिछले सात साल में खेल के दौरान अनुष्का की मौजूदगी को लेकर क्रिकेट संगठन की तरफ़ से विराट को मिली चेतावनियां जिन्हें भूलना हो, भूलें। ऐसे मसलों के प्रकाशन पर पत्रकारों को दी गई उनकी धमकियां जिन्हें भूलना हो, भूलें। अनिल कुंबले की आलोचना करने के बाद सुनील गावसकर द्वारा विराट के बारे में की गई टिप्पणी जिन्हें भूलनी हो, भूलें। लेकिन मैं यह कैसे भूलूं कि जो फिटनेस भीतरी परतों को इतना अशांत रखती है कि मन मौक़ा मिलते ही आपा खो दे, ऐसी फिटनेस का मतलब ही क्या? इससे तो थुलथुल बदन वाले स्माइलिंग-बुद्धा भले।
    सो, मैं तो नरेंद्र भाई की फिटनेस का उस दिन ही कायल हो पाऊंगा, जिस दिन वे ‘यह मोदी है, मोदी’ कह कर धमकाना बंद करने लायक बन जाएंगे; जिस दिन वे किसानों के आंसू और नौजवानों के खाली हाथ की पीड़ा महसूस करने लायक हो जाएंगे; जिस दिन वे भारत के हर, यानी हर, समुदाय को सचमुच अपना मानने लायक तंदुरुस्ती हासिल कर लेंगे; और, जिस दिन वे अपने दांत पीसने के बजाय मन से मुस्कराने लगेंगे। लोग कहते हैं कि वह दिन कभी नहीं आएगा। मगर मुझे लगता है कि वह दिन कभी तो आएगा। अगर नहीं आएगा तो मत आए। यह कोई मेरा-आपका दुर्भाग्य थोड़े ही है। यह देश इतना भी बुद्धू नहीं है कि विराट कोहली और नरेंद्र भाई के शारीरिक सौष्ठव के कव्वाली-मुकाबले पर तालियों की थाप देता रहेगा।
    इसलिए, या तो नरेंद्र भाई बदलेंगे या फिर देश बदलेगा। देश में बदलाव की आहट तो अब सनसनाहट में तब्दील होती दिखाई देने लगी है। कतरे जब उठते हैं तो बहुत बार समंदर भी बहा ले जाते हैं। हुकूमत की मदिरा में ऐसा नशा होता है कि अक्सर वह खुद की अंतिम हिचकियां भी ठीक से नहीं सुन पाती है। लेकिन अब इन हिचकियों की आवाज़ रोज़-ब-रोज़ इतनी तेज़ होती जा रही है कि बाकी सबको ठीक से सुनाई देने लगी है। इसलिए शारीरिक दंड-बैठक लगाने की होड़ करने वालों को उनके हाल पर छोड़िए। देश ने भी अपनी फिटनेस के लिए दंड पेलने शुरू कर दिए हैं। उसका वीडियो अगली गर्मियों में जब जारी होगा तो ऐसा वायरल होगा कि बाकी सारे वीडियो लस्त-पस्त पड़े होंगे।

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