Monday, October 15, 2018

परदेसी धरती, राहुल गांधी और भाजपा-विलाप




जर्मनी और ब्रिटेन में, भारत की घरेलू सियासत पर राहुल गांधी के मन की बातें सुन कर, भारतीय जनता पार्टी के तन-बदन में आग लग गई। अमित भाई शाह के तमाम जमूरे छोटे-परदों और अख़बारी-पन्नों पर मुट्ठियां ताने पैर पटकने लगे। ‘देशद्रोही’ राहुल पर लानत भेजने लगे। उन्हें भारत माता का ‘सुपारी हत्यारा’ करार दे दिया गया। दो-तीन दिनों तक राष्ट्रीय विलाप का एकमात्र सुर यह था कि सवा चार साल में दिन-रात अपने को झौंक कर प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने जो गर्वीला हिंदुस्तान बनाया, परदेस में राहुल ने उसकी मिट्टी पलीद कर दी। ऐसा तो कभी हमारे दुश्मन देशों ने भी नहीं किया।
राहुल की एक लुहारी-चोट से सकपकाई भाजपा यह भूल गई कि विदेशों में भारतीय अतीत की चमक को धुधला करने की सौ सुनारी-चोटें किसने की थीं? अब तक हमारे-आपके पंद्रह अरब रुपए से ज़्यादा खर्च कर प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी क़रीब साठ देशों का सफ़र कर चुके हैं। इनमें से अमेरिका और चीन वे पांच-पांच बार गए हैं। जर्मनी और रूस चार-चार बार घूम आए हैं। फ्रांस, नेपाल और सिंगापुर की तफ़रीह उन्होंने तीन-तीन बार की हैं। ग्यारह मुल्क़ ऐसे हैं, जहां वे दो-दो बार गए हैं और 40 देशों को एक-एक बार नवाज़ आए हैं। इनमें से शायद ही कोई देश ऐसा हो, जहां हमारे नरेंद्र भाई ने यह न बताया हो कि उनके सत्ता में आने से पहले तो कोई भारत की नमस्ते तक नहीं लेता था, हम किस कोने में पड़े हैं--कोई पूछता ही नहीं था और आज कैसे सब हमसे गले मिलने को आतुर हैं!
विदेशी भूमि पर अपनी इस भारत-गाथा की औपचारिक शुरुआत नरेंद्र भाई ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने के चौथे महीने ही अमेरिका में कर दी थी। 28 सितंबर 2014 को न्यू यॉर्क के मेडिसन स्क्वॉयर पर वे बोलते हुए उन्होंने बैंक राष्ट्रीयकरण से ले कर पिछली सरकारों की लालफीताशाही, ग़ैर-ज़रूरी नियम-क़ानूनों और गंगा की गंदगी पर तीखे इशारे किए और बताया कि कैसे अब उनके आने के बाद इन सब दिशाओं में सकारात्मक काम शुरू हुए हैं। महाशक्ति अमेरिका में अपने देश की हालत पर दीदे बहाने के बाद हमारे प्रधानमंत्री ने नवंबर 2014 को म्यांमार जैसे छोटे-से देश तक में भारत की अब तक की बदहाली की तोहमत दूसरों पर मढ़ने से गुरेज़ नहीं किया।
आज जिस लंदन में राहुल गांधी की कही बातें भाजपा को नागवार लग रही हैं, उसी लंदन के वेम्बले स्टेडियम में हमारे प्रधानमंत्री ने 2015 के नवंबर में लोगों को बताया था कि भारत के 18 हज़ार गांवों में 68 साल बाद भी बिजली नहीं पहुंची है और ज़ोर-शोर से पूछा था कि अगर इतने साल बाद भी हमारे देशवासी अंधेरे में रहने को मजबूर हैं तो हमें प्रायश्चित करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए? फिर उन्होंने बताया कि भारत दुनिया के भ्रष्टतम मुल्क़ों में है और हाथ पर हाथ मार कर पूछा कि जनता के पैसे की पाई-पाई का हिसाब जनता को मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए? जनता का धन किसी का घर भरने के लिए होता है क्या? नरेंद्र भाई ने हरियाणा में बेटे-बेटी के अनुपात में बहुत फ़र्क होने का मुद्दा भी उठाया और कहा कि अब वे इसे दुरुस्त कर रहे हैं। 
अभी जुलाई में नरेंद्र भाई उगांडा गए तो बोले कि भारत यानी सांप-संपेरों का देश, यही तो थी भारत की पहचान, हम उसे इस पहचान से बाहर लाए हैं। इसके पहले मई में इंडोनेशिया गए तो वहां बोले कि हमारे देश में एक एलईडी बल्ब तक साढ़े तीन सौ रुपए का मिलता था। मैं ने 40-50 रुपए का कर दिया। कहा कि पहले की सरकार के ज़माने में सिर्फ़ 28 सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे लोगों के बैंक खातों में जाता था, मैं 400 योजनाओं का पैसा सीधे लोगों को भेज रहा हूं। 
फरवरी में ओमान गए थे तो बताया कि कैसे भारत में अगर कोई उद्योग लगाना चाहता था तो कंपनी बनाने में ही महीनों लग जाते थे। कहा कि पहले ऐसी शासन-व्यवस्था थी कि योजनाएं तीस-तीस चालीस-चालीस साल पूरी नहीं होती थीं। नहरों का पता नहीं था। बिजली के खंभे गड़ जाते थे, उन पर तार नहीं लग पाते थे। 
नई रेलों को चलाने का ऐलान हो जाता था, लेकिन कोई पटरियां बिछाने के बारे में नहीं सोचता था। बोले कि कितनी ही सरकारें आई-गईं, लेकिन हमारे देश में कोई उड्डयन नीति ही नहीं थी। मैं आया तो बनाई। कहा कि घोटालों की लंबी सूची थी। दुनिया भर में भारत की साख पर बट्टा लगा हुआ था। नरेंद्र भाई ने फ़रमाया कि जब से मैं आया हूं, कोई नहीं कहता कि मोदी कितना ले गया? पहले लोग पूछते थे, कितना गया? अब पूछते हैं कि कितना आया? मस्कट में हमारे प्रधानमंत्री ने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियां भींच कर कहा कि भारत में काले धन का बोलबाला था। साढे तीन लाख फ़र्जी कंपनियां चल रही थीं। मैं ने सब पर ताले लगा दिए। 
नरेंद्र भाई की कही इन बातों की सच्चाई के फेरे में पड़ने के बजाय मैं सिर्फ़ यह जानना चाहता हूं कि अगर परदेसी-ज़मीनों पर वे ये सब बातें कह सकते हैं तो राहुल गांधी ने जर्मनी और ब्रिटेन में अपना दिल खोल कर रख देने में कौन-सा गुनाह कर दिया? अगर उन्होंने कहा कि भारत में सामाजिक सद्भाव खतरे में है, महिलाओं के खि़लाफ़ अत्याचार बढ़ रहे हैं और नोटबंदी ने मुल्क़ की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है तो क्या ग़लत कह दिया? रिज़र्व बैंक द्वारा नोटबंदी के बारे में जारी किए गए ताजा आंकड़े क्या राहुल की बात से अलग कुछ कह रहे हैं?
8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का तुगलकी पराक्रम दिखाने के चार दिन बाद 12 नवंबर को नरेंद्र भाई ने जापान की धरती पर क्या कहा था, बताऊं आपको? उन्होंने अपनी भुजाएं फड़काते हुए कहा था: ‘‘अचानक आठ तारीख़ को रात आठ बजे पांच सौ और हज़ार के नोट ठप्प। घर में शादी है, पैसे नहीं हैं, मां बीमार है, मुश्क़िल है, तक़लीफ़ है, कोई चार घंटे लाइन में खड़ा है, कोई छह घंटे खड़ा है, लोगों ने तक़लीफ़ झेली, लेकिन देश के हित में इस निर्णय को स्वीकार किया। मैं अपने देश की जनता को सौ-सौ सलाम करता हूं। पहले गंगा में कोई चवन्नी नहीं डालता था। अब नोट बह रहे हैं गंगा में। अब मुझे बताइए, चोरी का माल निकालना चाहिए या नहीं निकालना चाहिए?’’
अपने देशवासियों को जापान की धरती पर खड़े हो कर चोर-उचक्का बताने वाले हमारे प्रधानमंत्री की चपर-चपर टोली किस मुंह से राहुल की कही बातों पर बुक्का फाड़ कर रो रही है? विदेशी धरती पर कही, न कही, जाने वाली बातों की आचार-संहिता क्या इसके पहले किसी और प्रधानमंत्री ने तोड़ी थी? परदेस में हर जगह ताल ठोक-ठोक कर साठ साल को नाहक ही कोसते वक़्त जिन्हें उनकी आत्मा ने नहीं कचोटा, अब वे क्यों ताताथैया कर रहे हैं? राहुल गांधी ने हमारे मुल्क़ में बढ़ते असमानता, असंयम, असहिष्णुता, अन्याय और उत्पीड़न के तथ्यों को जर्मनी और ब्रिटेन में रह रहे भारतवशियों के सामने उधेड़ा तो एकदम ठीक किया। झूठे चिराग़ों को बुझाने का फर्ज अगर राहुल अदा नहीं करेंगे तो क्या इतिहास उन्हें माफ़ कर देगा? (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।)

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