Friday, August 2, 2019

चापलूसी के चरम की तोहमत के बावजूद

Pankaj Sharma
20 July, 2019

चेतन भगत ख़ुद को भले ही अंग्रेज़ी का प्रेमचंद समझते हों, मैं उन्हें आंग्ल-जगत के उपन्यास लेखन का बेहद भोंथरा गुलशन नंदा मानता हूं। पिछले कुछ वक़्त से उन्हें संजीदा सियासी गलियों के औपन्यासिक कथानक रचने का शौक़ भी चर्रा गया है। अंग्रेज़ी में अगड़म-बगड़म लिखने वालों को आन गांव का सिद्ध मान कर सज़दा कर रहे हिंदी-प्रकाशनों के बौद्धिक दिवालिएपन ने अपने पाठकों को ऐसे बहुत-से तेजाजी महाराजों के हवाले कर दिया है, जिनकी झाड़-फूंक से भारत का लोकतंत्र थरथरा रहा है। 
कच्ची सोच वाले चेतन भगत के जो पाठक कानों में उनकी बालियां पहने नाच रहे हैं, उन्हें कौन यह समझाए कि देश की राजनीति ‘हाफ़ गर्लफ्रेंड’ का चित्र-फलक नहीं है। हांगकांग में गोल्डमैन के इन्वेस्टमेंट बैंकर की नौकरी के बाद अंग्रेज़ी उपन्यासों के आधुनिक जगत में तो अपनी वैचारिक तरंगों को शब्दों में पिरो कर लोगों के गले उतार देना आसान हो सकता है, मगर भारत की पेंचदार सियासत पर अपनी क़लम का लड़कपन उंडेलने की चेतन की कोशिश बेतुकेपन की हद ही है। 
राहुल गांधी को कांग्रेसी सियासत के दंडक-वन भेजने की तिकड़म चेतन भगत काफी वक़्त से लगा रहे हैं। अनेक भुजाओं वाला हिंदी का एक महाकाय अख़बार चेतन भगत की देव-वाणी छाप कर अपना इहिलोक सुधारने में अरसे से लगा हुआ है। पिछले साल फरवरी की शुरुआत में चेतन भगत का एक लेख छाप कर बेपैंदी के इस समाचार-पत्र ने देश को बताया था कि वैसे तो राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस के लिए 2019 का चुनाव जीतना नामुमक़िन है, मगर अगर कांग्रेस फलां-फलां क़दम उठाए तो आम-चुनाव जीत भी सकती है।
चेतन भगत ने तब हमें बताया था कि अगर कांग्रेस राहुल के बजाय सचिन पायलट को भावी-प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर दे तो चुटकी बजाते चुनाव जीत जाएगी। अब, दो दिन पहले, इसी अख़बार ने चेतन भगत का एक और लेख छापा है, जो कहता है कि कांग्रेस अगर राहुल की जगह सचिन पायलट को अपना अध्यक्ष बना ले तो देखते-देखते तर जाएगी। डेढ साल पहले भी चेतन के गिरधर-गोपाल सिर्फ़ सचिन थे और आज भी वे ‘दूसरो न कोई’ के भाव से विभोर हैं। न उन्होंने कोई और नाम तब लिखा था, न अब। 
इस बार तो चेतन भगत ने एक कुलांच और भरी। 6 जुलाई को अपनी ट्विटर-मुठिया पर उन्होंने एक जनमत-संग्रह आयोजित किया। सवाल दागा कि कांग्रेस की मौजूदा परिस्थितियों में अध्यक्ष पद के लिए पुराने तज़ुर्बेकारों के बजाय क्या सचिन पायलट बेहतर रहेंगे? जवाब के लिए हां, ना और पता नहीं के तीन विकल्प दिए। चेतन का कहना है कि उन्हें 43 हज़ार लोगों की राय मिली। उनमें से 86 प्रतिशत ने हां कहा। सो, सचिन की पगड़ी पर यह कलगी जब लगेगी, तब लगेगी, चेतन तो इन दिनों अपनी पगड़ी पर उसे लगाए घूम रहे हैं। 
सचिन मेरे भी प्रिय हैं। मैं उनका प्रिय हूं या नहीं, मालूम नहीं। उनके पिता राजेश पायलट मुझ से ज़रूर बेहद मित्रवत थे। इसलिए चेतन भगत की सलाह पर अगर सचिन प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित हो जाते और नरेंद्र भाई मोदी को चुनावी-दुलत्ती मार देते तो मैं तो परसाद बांटता। अब चेतन की सलाह पर अगर वे कांग्रेस-अध्यक्ष बन दिए जाएं और 134 बरस पुरानी पार्टी पार लग जाए तो भी मैं अगले ही दिन गंगा नहाने चला जाऊंगा। लेकिन अहमदाबाद के आईआईएम में ढले विचारों से ही अगर कांग्रेस की गुत्थियां सुलझ सकतीं तो फिर आज की नौबत ही क्यों आती? चेतन भगत ज़रा इतना तो समझें कि जिस कांग्रेस ने राहुल गांधी की नेकनीयती को दिन में ऐसे तारे दिखा दिए कि वे बेचारे स्व-समाधि ले बैठे, वह सचिनों को कौन-कौन से आसमानों की सैर कराने का माद्दा रखती है?
अपने सारे पत्थर राहुल पर और सारे फूल सचिन पर बरसाने के अनवरत पूर्वाग्रह से सराबोर चेतन भगत ने अपने ताज़ा लेख में बेसिर-पैर की कुछ अवधारणाएं पेश कर अपने दुराग्रही दिमाग़ की व्यापक झलक हमें दी है। बानगी देखिएः
एक, कांग्रेस मरी नहीं है, मगर इसमें जान भी नहीं है और हम नहीं जानते कि इसमें जान कब लौटेगी। यह सब राहुल गांधी के इस्तीफ़े की वज़ह से हो रहा है। उनका इस्तीफ़ा एक ईमानदार पहल नहीं है। इस्तीफ़ा पद से है न कि सत्ता से।
दो, गांधी-परिवार ने मंच तो खाली कर दिया है, पर हाशिए पर खड़ा होकर वह देख रहा है कि उनकी जगह लेने की हिम्मत कौन करता है। गांधी-परिवार के सदस्य सिर्फ़ ख़ुद की तरफ़ देख रहे हैं। गांधी-परिवार दिन-ब-दिन अलोकप्रिय होता जा रहा है। उसके पुनरुद्धार की संभावना असाधारण रूप से शून्य है। यह परिवार बहुत पहले ही नए भारत से अपना संपर्क खो बैठा है। अपना रिश्ता गंवा चुका है। वह विनम्रता, पश्चात्ताप अथवा बदलने की इच्छा दिखाने से इनकार कर रहा है।
तीन, परिवार चीज़ों को ठीक करना नहीं चाहता। उन्हें अपनी जवाबदेही महसूस नहीं हो रही है। वे मुह फुला कर बैठे हैं। जब पार्टी का क्षरण हो रहा है तो शीर्ष पर इससे निपटने की कोई योजना नहीं है।
चार, 86 प्रतिशत लोग पुराने नेता की जगह सचिन पायलट को बतौर अध्यक्ष पसंद कर रहे हैं। फिर भी कांग्रेस में सुई हिलने को तैयार नहीं है।
चेतन भगत के इस बोध-ज्ञान की बलिहारी! चेतन यह तय तो कर लें कि कांग्रेस की जान राहुल की वजह से जा रही है या राहुल के हटने से कांग्रेस बेजान हो गई है? चिपकू-सियासत के घनघोर कलियुग में राहुल का इस्तीफ़ा भी जिन्हें ईमानदार पहल नहीं लग रही, मुझे तो लगता है कि उनकी पट्टी-पूजा में कोई बुनियादी ख़ामी रह गई है। गांधी-परिवार के सदस्य अगर ख़ुद की तरफ़ देख रहे होते तो न पामुलपर्ति वेंकट नरसिंहराव प्रधानमंत्री बनते और न डॉ. मनमोहन सिंह। क्या चेतन भगत हमें ईमानदारी से बताएंगे कि उन्होंने प्रकाशकों के गठजोड़ और बाज़ारवाद की किलेबंदी को भेद कर उपन्यासों की दुनिया में अपने कितने समकालीनों के शिखर तक पहुंचने में अड़ंगे डाले? छिछले लेखन के संसार तक में हर तरह की उठापटक कर के स्पर्धियों को पटकनी देने में मसरूफ़ रहने वाले, राजनीति के बीहड़ संसार में, ख़ुद बगल होकर, दूसरों को रास्ता देने के पीछे का भाव क्या ख़ाक समझेंगे?
जिन्हें कांग्रेस और देश की राजनीति चेतन भगत से समझनी हो, समझें। मुझ जैसे लाखों लोगों का दुर्भाग्य कभी इतना प्रबल नहीं होगा कि उन्हें बाज़ारू-ठुमकों के बूते चार दिनों की शोहरत हासिल कर लेने वालों से राजनीतिक मोहिनीयट्टम के सूत्र समझने पड़ें। बावजूद इसके कि चेतन-चिंतन के अनुगामियों को कांग्रेस इतनी अधमरी दिखाई दे रही है कि नेहरू-गांधी परिवार तो अब कभी उसका उसका उद्धार कर ही नहीं सकता, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जिस दिन सोनिया-राहुल-प्रियंका ने कांग्रेसी-नाव से अपने चप्पू पूरी तरह खींच लिए, उसकी किरचें बिखर जाएंगी। 
जो आज के इस सच से निग़ाहें चुराना चाहते हैं, ख़ूब चुराएं। इस सत्य के कथ्य को चेतन भगत ने अपने लेख में चापलूसी का चरम बताया है। मेरे जैसे बहुत-से लोग यह तोहमत इसलिए लेने को तैयार हैं कि उन्हें दूर से दिखाई दे रहा है कि यह ‘मोशा-युग’ है। सो, भारत कांग्रेस-मुक्त तभी होगा, जब कांग्रेस परिवार-मुक्त होगी। इसलिए तब तक, जब तक कि देस-परदेस के क्षितिज पर उतनी ही प्रभावोत्पादक, उतनी ही समर्थ और उतनी ही दिलेर नाभिकीय-इकाई निर्मित नहीं होती; कांग्रेस हड़बड़ी में कोई भी जोख़िम उठाएगी तो जिस डाल पर बैठी है, उसे काटने का आत्मघाती काम करेगी। बाकी प्रभु-इच्छा! (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।)

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