Friday, August 10, 2018

सियासी बवाल की तरफ़ बढ़ती भाजपा



पंकज शर्मा

 (Dainik Bhaskar. 9 August 2018)

            भारतीय जनता पार्टी सियासी बवाल की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रही है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में तो इसकी जो झलक देखने को मिलेगी, सो मिलेगी ही; अगले बरस संसद के बजट सत्र के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा-अध्यक्ष अमित शाह का इम्तहान और कड़ा हो जाएगा। केंद्र और राज्य सरकारों के खुफ़िया महकमों से अनौपचारिक तौर पर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आकलन दलों से अर्द्ध-औपचारिक तौर पर और भाजपा द्वारा नियुक्त सर्वे-कंपनियों से औपचारिक तौर पर अमित शाह को मिली रपटों ने मोटे तौर पर यह तय कर दिया है कि मौजूदा 273 में से 142 भाजपाई-सांसदों को अगले चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा।

            उम्मीदवारी गंवाने वाले संभावित लोकसभा सदस्यों की सूची संकेत देती है कि 2019 के आम-चुनाव से पहले भाजपा के लिए सबसे बड़ा बखेड़ा उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक में खड़ा होने वाला है। इन 12 राज्यों में भाजपा के फ़िलहाल 230 लोकसभा सदस्य हैं। इनमें से 149 को बाहर का रास्ता दिखाया जाने वाला है।

            उत्तर प्रदेश में भाजपा के मौजूदा 68 सांसदों में से 42 के नाम संदिग्ध-सूची में हैं। बिहार के 22 में से 13 सांसदों को दोबारा प्रत्याशी नहीं बनाए जाने की संभावना है। गुजरात में भी भाजपा ने अपने 16 सांसदों को मैदान में उतारने का फ़ैसला फ़िलहाल तो कर ही रखा है। राजस्थान में 15, मध्यप्रदेश में 17 और महाराष्ट्र के 14 सांसदों के सिर पर भी अमित शाह की तलवार लटक चुकी है। छत्तीसगढ़ में भाजपा अपने 7 लोकसभा सदस्यों को अगली बार मैदान में नहीं उतारेगी। झारखंड में भी 5 मौजूदा सांसदों की जगह दूसरों को मौक़ा देने का उसका इरादा है। हरियाणा में अपने 5 सांसदों को वह वापस बुलाएगी। हिमाचल प्रदेश में भी 3 मौजूदा सांसदों को वह उम्मीदवार नहीं बनाएगी। दिल्ली में भी भाजपा 5 सांसदों को दोबारा लड़ने का मौक़ा नहीं देने की तैयारी में है। कर्नाटक में वह अपने 7 लोकसभा सदस्यों के चेहरे बदलेगी।

            इनके अलावा आंध्र प्रदेश के एक, असम के दो, गोआ के एक, जम्मू-कश्मीर के एक, पश्चिम बंगाल के एक और चंडीगढ़ के एकमात्र लोकसभा सदस्य को फिर चुनाव लड़ने का मौक़ा भी अमित शाह शायद ही देंगे। यानी कुल मिला कर भाजपा के 156 लोकसभा सदस्यों को घर भेजने की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। इन सभी लोकसभा क्षेत्रों में दो-दो संभावित नामों के चयन की प्रक्रिया इस साल के अंत तक शक़्ल ले लेगी।
           
            बावजूद इसके कि मोदी-शाह के पराक्रमी फ़ैसलों को चुनौती देने लायक सियासतदां अब भाजपा में हैं ही कहां, मुझे लगता है कि क़रीब 57 प्रतिशत मौजूदा सांसदों को धकियाने का जोख़िम दोनों के लिए ख़ासा बड़ा है। इसका अंतिम खाका तो दिसंबर में चार राज्यों के चुनाव निबट जाने के बाद ही तैयार होगा, मगर पिछले तीन महीने से भाजपा के गर्भ-गृह में चल रही 2019 की तैयारियों के जानकार कहते हैं कि पार्टी की शिखर जुगल-जोड़ी अभी तो किसी की सुनने को तैयार नहीं है।

            इस वक़्त लोकसभा में भाजपा की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से ज़रा-सी ज़्यादा है। यह इसलिए और भी अहम है कि दूसरी सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस की हिस्सेदारी सिर्फ़ 9 प्रतिशत पर लटकी हुई है। लोकसभा सीटों की हिस्सेदारी में 42 फ़ीसदी की यह खाई विकट दिखती ज़रूर है। लेकिन विपक्ष अगर एकजुट हो गया तो कोई हैरत नहीं कि इसे पाट कर भाजपा से एकाध क़दम आगे निकलने की उसकी मंशा पूरी हो जाए। इसलिए कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का रेखागणित पिछले डेढ़ साल से बेतरह हिचकोले खा रहा है और जिन धुरंधरों की उम्मीदवारी पर पानी फिरेगा, उनमें से ज़्यादातर, क्या नए चेहरों को पानी पिलाने में कोई कोताही छोड़ेंगे?

लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक हैं।

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