चाणक्य-परंपरा का कलियुगी-वाहक माने जाने वाले भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित अनिलचंद्र शाह के, इस हफ़्ते अंग्रेज़ी के एक अख़बार में छपे साक्षात्कार ने, मेरे तो रोंगटे खड़े कर दिए। भारतीय लोकतंत्र जिन राजनीतिक दलों की मेहरबानी से चल रहा है, भाजपा उनमें सबसे बड़ी है। कहते हैं कि वह संसार का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। सो, उसके मुखिया के तेवर की तलहटी में तैर रही निष्ठुरता से मुझे तो अब तक कंपकंपी छूट रही है।
साक्षात्कार लेने वाले ने थोड़ी हिम्मत दिखा कर अमित भाई से पूछा कि आप अपनी पार्टी के लोगों को सामाजिक सद्भावना बिगाड़ने वाले बयान देने से रोकते क्यों नहीं हैं? भाजपा-अध्यक्ष ने जवाब दिया कि मैं उनके मुंह पर ताला नहीं लगा सकता।...हमारी पार्टी में लोकतंत्र है।...आप ऐसे बयानों को प्रचारित ही क्यों करते हैं?
अमित भाई के नज़रिए ने मेरी आंखें पूरी तरह खोल दीं। पहले मुझे लगता था कि भाजपा का नेतृत्व इतना संजीदा तो ज़रूर है कि वह अपने आगिया-बैतालों पर अंकुश लगाने की कोशिश तो करता ही होगा, मगर फिर भी वे अपनी आदत से बाज़ नहीं आते होंगे। लेकिन अब जा कर मालूम हुआ कि लोकतंत्र को हर हाल में ज़िंदा रखने की जिजीविषा के चलते लोगों के मुंह पर ताला नहीं लगाया जा रहा है।
साक्षात्कार लेने वाले ने अमित भाई से पूछा कि लोग भाजपा को दो लोगों की पार्टी क्यों कहते हैं? भाजपा-अध्यक्ष ने कहा कि ‘कोई ऐसा नहीं कहता है’। इस पर पत्रकार ने उन्हें बताया कि भाजपा के ही लोग ऐसा कहते हैं। पत्रकार ने कहा कि ‘आपसी बातचीत’ में बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि पार्टी में कोई लोकतंत्र नहीं है और भाजपा सिर्फ़ दो लोगों की पार्टी बन कर रह गई है। अमित भाई ने जवाब दिया कि न तो कोई मेरे सामने ऐसा कहता है और न मेरे पीठ पीछे, क्योंकि सब जानते हैं कि मुश्क़िल से ही कोई बात ‘आफ द रिकॉर्ड’ रह पाती है। फिर साक्षात्कार लेने वाले से बोले कि मुझे उनके नाम बताइए, जो आपसे कहते हैं।
संदेश संकेतों में ही पूरी तरह साफ हो गया। अमित भाई ने साफ कर दिया कि पार्टी में लोकतंत्र है, इसलिए वे भड़काऊ बयान देने वाले अपने लोगों के मुंह पर ताला नहीं डालेंगे और समाचार-माध्यमों से उम्मीद करेंगे कि वह ऐसे बयानों को प्रचारित न करे; लेकिन चूंकि पार्टी में लोकतंत्र है, इसलिए वे यह नहीं सुनेंगे कि उसे दो लोग ही चला रहे हैं और अगर कोई ‘आपसी बातचीत’ में ऐसा कह भी रहा है तो यह समझ ले कि आपसी बातचीत की गोपनीयता इतनी भी अक्षुण्ण नहीं है कि अमित भाई की खुर्दबीन उसे भेद न ले। इसलिए सामने तो सामने, पीठ पीछे भी कोई ऐसा कहने की हिमाकत न करे।
युगों में किसी राजनीतिक दल को ऐसा मुखिया मिलता है, जो अपनों को ही ऐसा दाऊदी-तेवर दिखाए। युगों में ही किसी देश को भी ऐसा मुखिया मिलता है, जो अपने ही देशवासियों से पूछे कि सुधरोगे कि नहीं सुधरोगे? सियासत, समाज और मुल्क़ को नई दिशा देने वाले ऐसे सुधारक पा कर भी जो अपने को धन्य न समझें, उनकी मति मारी गई है। इसलिए मैं तो अपने को पिछले दो-चार दिनों से पहले से भी बहुत ज़्यादा धन्य समझने लगा हूं। भारत-भूमि पर जन्म तो दरअसल अब जा कर सार्थक हुआ।
समाचार माध्यमों में से चुन-चुन कर संवादकर्मियों को निकाले जाने पर आज अपनी छाती पीटने वाले अगर साढ़े चार साल से चुप नहीं बैठे होते तो हमें आज ये दिन नहीं देखने पड़ते। आज इस अत्याचार पर बुक्का फांड़ कर रो रहे लोगों में से ज़्यादातर का कच्चा-चिट्ठा यह है कि 2014 की गर्मियों से लेकर 2017 की सर्दियों तक वे खुद भी चरण-चुंबन स्पर्धा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। जिनकी निगाह एडविन लुटियन के 2800 हैक्टेयर की नईदिल्ली से अब तक बाहर नहीं गई, आज उन्हें हाहाकार करते देख मुझे तो उन पर कोई तरस नहीं आ रहा।
कौन नहीं जानता था कि ढाई-तीन महीने बाद 54 साल के हो जाने वाले अमित भाई 56 इंच की उस छाती से चिपट कर आज यहां पहुंचे हैं, जिस पर गर्व न करना आपको राष्ट्रविरोधी करार दे सकता है? कौन नहीं जानता था कि अहमदाबाद के पास सरखेज से विधानसभा का पहला उपचुनाव जीतने के बाद अमित भाई एक बार नहीं, चार-चार बार और विधानसभा में पहुंचे और हर बार पिछले मतों से ज़्यादा से जीते? कौन नहीं जानता था कि 2014 के लोकसभा के चुनाव में कैसे अमित भाई ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 सीटें भाजपा की झोली में खींच ली थीं? कलियुगी-राजनीति में इन कामयाबियों के सरताज को क्या आप ऐसा-वैसा समझ रहे थे? सब जानते-बूझते जिन्होंने अपने मुंह पर ताला जड़ रखा था, आज के नक्कारखाने में उनकी नारेबाज़ी कौन सुनेगा?
मुझे तो शुरू से अटल-विश्वास है कि अमित भाई हमारे नरेंद्र भाई मोदी से भी कहीं ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं। दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में थे। 36 साल पहले नरेंद्र भाई ही उन्हें संघ में ले गए थे। लेकिन जब संघ से भाजपा में आने की बारी आई तो अमित भाई अपने नरेंद्र भाई से एक साल पहले ही वहां पहुंच गए और भारतीय जनता युवा मोर्चा का काम करने लगे। गुजरात में मोदी के दो दशक बाकी किसी के लिए कैसे भी रहे हों, अमित भाई ने तो सहकारी समितियों से शुरू कर के शतरंज और क्रिकेट एसोसिएशन तक को भी अपनी हथेली में समेटने में कोई कोताही नहीं की। एक समय तो ऐसा आया कि वे बारह मंत्रालयों के मंत्री थे। उनके पास गृह, क़ानून-न्याय, आबकारी, परिवहन, शराबबंदी और जेल जैसे महकमे थे, जिन पर किसी भी राज्य में सब की लार टपकती है।
अमित भाई की हरफ़नमौलाई पर कोई और फ़िदा हो-न-हो, मैं तो हूं। वे हर विवाद के चक्रव्यूह को ठेगा दिखा कर चार साल पहले भाजपा के अध्यक्ष बने हैं। न सोहराबुदीन उनकी राह का रोड़ा बन पाया और न फोन-टेप कांड उन्हें खरोंच पाया। दिल्ली और बिहार में भाजपा की बुरी हार के बावजूद दोबारा बतौर अध्यक्ष उनकी ताजपोशी भी कोई नहीं रोक पाया। इतने संघर्षों से निखर कर निकले अमित भाई भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए दिन-रात एक नहीं करेंगे तो कौन करेगा? अगर वे भारत में लोकतंत्र जिंदा रखने में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के साथ कंधे-से-कंधा मिला कर काम नहीं करेंगे तो कौन करेगा? इसलिए कुछ समाचार माध्यमों पर ‘अपने राष्ट्र के हित में’ चल रही चाबुक पर इतनी चिल्ल-पों मत मचाइए।
अगर आप इतने मासूम थे कि आपको लगता था कि अमित भाई अपने पिता की तरह जीवन भर पीवीसी पाइप बेचने का धंधा करते रहेंगे तो इसमें किसी और का क्या कसूर? वे राजनीतिक कीर्तिमानों की झड़ी लगाने के लिए जन्मे हैं। उन्होंने नए-से-नए कीर्तिमान स्थापित कर के दिखाए भी हैं। अगर हम-आप उन्हें मौक़ा देंगे तो वे ऐसे और भी कई कीर्तिमान बना कर आगे भी दिखाएंगे। वे उन लोगों की तरह नहीं हैं, जो हाथ आया मौक़ा हाथ से चला जाने देते हैं। इसलिए रोना-धोना छोड़ कर, आइए, हम सब लोकतंत्र का उत्सव मनाएं! (लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं।)
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