Wednesday, November 20, 2019

अंतर्ध्यान सेनापति के पुनरोदय का प्रश्न


पंकज शर्मा
कांग्रेस मरेगी तो नहीं। लेकिन अगर उसे आज के पक्षाघात से उबारने की कोशिशें ठीक से नहीं हुईं तो क्या ऐसी कांग्रेस का होना-न-होना बराबर नहीं होगा? मेरी मूढ़मति है, जो मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आख़िर कांग्रेस आज के हालात से बाहर आने के लिए हाथ-पैर क्यों नहीं फेंकेगी? वह ज़रूर कुछ-न-कुछ करेगी। मगर कब करेगी? ढाई महीने से वह पांव सिकोड़े क्यों बैठी है? वे कौन हैं, जिन्हें कुछ करने के लिए संसद के सत्र की समाप्ति का इंतज़ार करना ज़रूरी लगता रहा?
क्या कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष की नियुक्ति बीच सत्र में हो गई होती तो संसद में बवाल हो जाता? कांग्रेसी सांसदों को छोड़ कर संसद में पड़ी ही किसे है कि कांग्रेस का अध्यक्ष कौन बनता है? नरेंद्र भाई मोदी और अमित भाई शाह की भारतीय जनता पार्टी को तो इससे ही पूरी तसल्ली हो गई है कि राहुल गांधी ख़ुद हट गए हैं और उन्होंने प्रियंका और सोनिया गांधी के सिरमौर बनने पर भी पूर्ण-विराम लगा दिया है। कांग्रेस-मुक्त भारत की परिकल्पना कांग्रेस को नेहरू गांधी-मुक्त किए बिना पूरी हो ही नहीं सकती थी। सो, पहला काम हो गया। ‘मोशा’ अब अगले काम पर लगेंगे।
धीरज धरना तो कोई कांग्रेसियों से सीखे! नोटबंदी के दिनों में वे बैंकों की कतार में गुस्से से तमतमा रहे और क्षोभ से बिलख रहे लोगों के साथ खड़े हो कर बाहें चढ़ाने के बजाय प्याऊ खोल कर बैठ गए थे। अब ईवीएम के जिन्न से निकले 303 के अंक को उन्होंने प्रभु-इच्छा मान कर मंजूर कर लिया है। झोला उठा कर नरेंद्र भाई को जाना था, चले गए राहुल गांधी। मैं ने पिछले ढाई महीने में, छोटे-से-छोटे से ले कर बड़े-से-बड़े तक, सबसे पूछा कि अभी तो जो हो गया, सो हो गया, मगर अब 2024 में नरेंद्र भाई को उनका झोला थमाने की कांग्रेस के पास क्या योजना है? सबका जवाब था कि कुछ-न-कुछ चमत्कार ज़रूर होगा; कि जिनकी बुनियाद में झूठ हो, वे कभी-न-कभी अपने आप ही फ़ना हो जाते हैं; कि जब-जब पृथ्वी पर अन्याय बढ़ते हैं, कोई-न-कोई तारनहार जन्म ले ही लेता है।
वाह! ऐसी अद्भुत सतयुगी अदा से कलियुगी सियासत करने वालों पर मेरा तो जी निछावार है। बाकियों का मैं नहीं जानता, मगर पच्चीस बरस की आपाधापी भरी पत्रकारीय आजीविका से विदा ले कर राजनीतिक-धैर्य के इस मानसरोवर में डुबकी से मेरा तो जीवन धन्य हो गया। आसपास मची मारामारी और चीख-पुकार के कुरुक्षेत्र में भी जो ध्यानस्थ बैठ सकें, उनके दर्शन का अवसर मिलना भी कोई कम सौभाग्य है? सात जनम भी पत्रकार बना रहता तो क्या कभी ऐसे संत-संपादकों से मिलना हो पाता, जो आसपास के बदतर होते हालात में, अपनी क़लम बग़ल में दबाए, चेहरे पर मुस्कान लिए, अविचल भाव से अपनी धूनी रमाए बैठे है?
कांग्रेस की औपचारिक सदस्य संख्या कितनी है और कितनी नहीं, यह बेमानी है। कांग्रेस भारत के करोड़ों लोगों के वैचारिक जीवन-मरण का प्रश्न है।  कांग्रेस का कमज़ोर होना, एक विचार का कमज़ोर होना है, एक नज़रिए का कमज़ोर होना है और उस बुनियाद का कमज़ोर होना है, जिस पर भारत की जम्हूरियत टिकी हुई है। ऐसे में कांग्रेस की चूलें हिलाने की हक़ किसी को भी नहीं है। राहुल-सोनिया-प्रियंका को भी नहीं। माफ़ कीजिए, ढाई महीने पहले राहुल ने कांग्रेस की समूची संरचना को झकझोर देने का काम किया है। उन्हें मालूम ही नहीं है कि रहने-न-रहने का फ़ैसला करना उनका व्यक्तिगत अधिकार है ही नहीं।
कांग्रेस राहुल गांधी की नहीं है, राहुल गांधी कांग्रेस के हैं। देश के जो करोड़ों लोग नरेंद्र भाई के खि़लाफ़ आवाज़ बुलंद करते हुए राहुल के पीछे खड़े थे, क्या उनमें से एक से भी राहुल ने पूछा कि रहूं या जाऊं? रात को इस तरह उन्हें अकेला सोते छोड़ कर चले जाने से राहुल कितने बुद्ध बन पाएंगे, आने वाला वक़्त बताएगा। अभी का वक़्त तो यह बता रहा है कि सेनापति ने अचानक अंतर्ध्यान हो कर ज़मीनी सैनिकों के पूरे जज़्बे पर पानी फेरने का पाप किया है। पवित्र बाइबल में पाप के चार प्रमुख प्रकार बताए गए हैं। इनमें से एक है ’अनदेखी करने का पाप‘–‘सिन्स ऑफ़ निग्लेक्ट’ (जेम्स 4ः17)। मनुष्य इस पाप का भागी तब बनता है, जब वह उन ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करने की परवाह करने से इनकार करता है, जो ईश्वर ने उसे सौंपी हैं।
अगर राहुल को लगता है कि कांग्रेस की अगुआई करना उनके लिए किसी क़िस्म का राजनीतिक दायित्व है तो मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि यह ‘इत्ती-सी बित्ते भर की’ बात नहीं है। यह उससे बहुत बड़ी बात है। यह ‘ईश्वर-प्रदत्त’ है। कु़दरत का निज़ाम ऐसे ही नहीं चलता है। क़ुदरत को मालूम रहा होगा कि जब भारत में ‘मोशा-काल’ आएगा तो आधारभूत वैचारिक-अंकुरों का शंखनाद करने के लिए भी किसी की ज़रूरत पड़ेगी। राहुल को पंद्रह बरस के थपेड़ों ने इसी दिन के लिए तैयार किया था। मेरी संपूर्ण चेतना मुझे यह कहने को प्रेरित कर रही है कि जब सचमुच वह दिन आया तो राहुल ने अपने को परे कर के ईश्वरीय इच्छा की अवज्ञा की है। कांग्रेस को सोनिया और प्रियंका से भी वंचित कर के उन्होंने प्रकृति के क्रम-विकास के सिद्धांत की अवहेलना की है। क़ुदरत के नियम जीवन के हर क्षेत्र में लागू होते हैं–राजनीति के क्षेत्र में भी। उनमें बाधा डालना, किसी भी धर्म के शास्त्रों में कोई कम बड़ा दोष नहीं माना गया है।
राहुल-प्रियंका-सोनिया द्वारा संगठन-नेतृत्व से अपने को पूरी तरह विलग कर लेने के बाद कांग्रेस का मुखिया तो कोई भी बन जाएगा, लेकिन वह भारतीय मानस में उस विचार का प्रतिनिधि कैसे बन पाएगा, जिसकी आंच से अंततः कोई बदलाव आ पाए? कांग्रेस, भाजपा नहीं है, जिसका अध्यक्ष कोई भी बन ले, नेता तो नरेंद्र भाई ही रहेंगे। भाजपा नरेंद्र भाई को अपना-तो-अपना, पूरे देश का शुभंकर बनाए रखने के लिए दिन-रात काम करती है। यहां तो अपनी ही कांग्रेस से ज़ख़्म खा कर राहुल का दर्द रिसा है। राहुल अगर ऐसी कांग्रेस बना पाते, जो उन्हें प्रतीक-चिह्न बनाने के लिए काम करती तो पहले ही नहीं बना लेते? अब ऐसा कौन ‘अमित शाह’ कांग्रेस को मिल जाएगा, जो बिना आगा-पीछा सोचे, अपने ‘नरेंद्र भाई’ लिए सब-कुछ झौंक दे?
इसलिए जो सोच रहे हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी रहे, मुल्क़ में विपक्षी विचारों की नुमाइंदगी तो राहुल ही करेंगे; वे नरेंद्र भाई मोदी को सियासत का मेमना मान कर चल रहे हैं। कांग्रेस को गांधी-मुक्त करा देने वाले नरेंद्र भाई क्या भारत के विपक्षी-विमर्श का सेहरा राहुल और प्रियंका के सिर बंध जाने देंगे? मैं ने कांग्रेस-अध्यक्ष बनते ही तेलंगाना के नरसमपेट से चल कर दिल्ली आए पामुलपर्ति वेंकट नरसिंह राव और बिहार के दानापुर से कूद कर दिल्ली पहुंचे सीताराम केसरी का गिरगिटीकरण होते हुए नज़दीक से देखा है। अब बीस-तीस साल में तो कांग्रेसी-दरिया भी काफी मटमैला हो चुका है। अब जो ज़्यादातर लोग कांग्रेस में हैं, उनमें कांग्रेस कहां है?
सो, अगर ऐसा हो पाए कि किसी के भी अध्यक्ष रहते कांग्रेस की धमनियां राहुल-प्रियंका को प्राणवायु देने का निस्वार्थ हवन करती रहेंगी, तो मैं ऐसी कांग्रेस के सामने नतमस्तक हो जाऊंगा। मेरी प्रार्थना है कि मुझे ऐसा श्रद्धावनत होने का अवसर मिले। जब मिले, पर मिले। तब तक आपके साथ मैं भी अपने को होनी के हवाले कर रहा हूं। ईश्वर करें, कोई अनहोनी न हो!

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