Saturday, August 21, 2021

ग़लत प्रस्तावना के चक्रव्यूह में राहु

 


आप भी इन दिनों लगातार यह सुनते होंगे कि एक अकेले राहुल गांधी ही हैं, जो देश भर में नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी से लड़ रहे हैं; एक अकेले राहुल गांधी ही हैं, जो नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा से लड़ सकते हैं; एक अकेले राहुल गांधी ही हैं, जिनके मन में संघ-कुनबे से लड़ने की अनवरतता के मामले में कोई विचलन नहीं है; एक वे ही हैं, जो इस सिलसिले में अपनी वैचारिक स्थिरता बनाए हुए हैं।

तो सवाल यह उठता है कि बाक़ी की कांग्रेस क्या घास छील रही है? क्या वह देश भर में मोदी और भाजपा से नहीं लड़ रही है? बाक़ी के कांग्रेसी मोदी या भाजपा से क्यों नहीं लड़ सकते और यह ज़िम्मा एक अकेले राहुल के ही कंधों पर क्यों आन पड़ा है? बाक़ी के कांग्रेसियों के मन में संघ-कुनबे से लड़ने को ले कर क्या कोई सैद्धांतिक अविचलन है? बाक़ी के कांग्रेसियों के मन की स्थिरता क्या कहीं हवा हो गई है?

पौने दो साल पहले, 3 जुलाई 2019 को, जब राहुल ने लोकसभा चुनाव में हार का ज़िम्मा लेते हुए कांग्रेस-अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया था तो कहा था कि मत-कुरुक्षेत्र में उन्हें कई बार लगा कि मोदी से युद्ध में वे एकदम अकेले खड़े हैं। यानी कि राहुल को यह बात साल रही थी कि जब बाग़बां ने उनके आशियाने को आग दी तो जिन पे तकिया था, वही पत्ते हवा देने लगे थे। जिन सिपाहसालारों के भरोसे वे मैदान में कूदे थे, वो घर जला रही लपटों का साथ दे रहे थे।

राहुल के इस भीतरी अहसास में दम हो सकता है। हो सकता है कि चंद घुटे हुए कांग्रेसियों का तब ऐसा रंग राहुल ने देखा हो कि उनका दिल टूट गया। दिल तो बच्चा है जी! सो, तब से वे अकेले ही जंग लड़ने की मुद्रा में आ गए हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा हुआ होगा कि पूरी कांग्रेस ने राहुल को अकेला उनके हाल पर छोड़ दिया हो? क्या सचमुच ऐसा है कि आज भी पूरी कांग्रेस राहुल को अकेले उनके हाल पर छोड़े हुए है? या फिर ऐसा है कि राहुल ने पूरी कांग्रेस को अकेले उसके हाल पर छोड़ दिया है?

राहुल एकाधिक बार कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी उनका तो इसलिए कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं कि उन्होंने कभी कुछ ग़लत किया ही नहीं है। वे शिख-नख पाक-साफ़ हैं। सो, मोदी कर क्या लेंगे? राहुल की इस बात में भी ग़ज़ब का दम है। जब कुछ ग़लत-सलत किया ही नहीं है तो किसी से भी क्यों डरें? तो क्या बाक़ी के कांग्रेसी मोदी के खि़लाफ़ ताल ठोक कर इसलिए नहीं बोल रहे हैं, उनके दरख़्तों के तने इतने नाज़ुक हैं कि मोदी को आंखें दिखाने के लिए ज़रा-से हिले-डुले तो मोदी का त्रिनेत्र उन्हें पल भर में भस्म कर देगा?

सो, अगर राहुल अकेले युद्धरत हैं और अगर अकेले वे ही मोदी से लड़ सकते हैं तो क्या इस तर्क की प्रस्तावना यह है कि शेष कांग्रेसियों के कुर्ते राहुल की कमीज़ से ज़्यादा सफ़ेद नहीं हैं, इसलिए वे हुंकारने के बजाय मिमिया रहे हैं? राहुल के वस्त्रों की धवलता को मैं सौ में से दो सौ अंक दूंगा। मगर बाक़ी सारे कांग्रेसियों के दामन पर धब्बे-ही-धब्बे देखने वाली आंखें मेरे पास तो नहीं हैं। कुरुक्षेत्र का चल-विवरण सुनाने वाली दिव्य-दृष्टि जिन अगलियों-बग़लियों के पास है, उनकी महिमा वे जानें! और, जिन्हें इस वृत्तांत के आधार पर ही अपने निष्कर्षों पर पहुंचना है, उनकी विडंबना, उनके पल्ले! मैं तो इतना भर समझता हूं कि इक्कादुक्का कुलकलंक तो कहीं भी हो सकते हैं, लेकिन एकाध को छोड़ कर कांग्रेस का पूरा घान ही आज के कलियुग में कलुषित हो गया है, यह बात तो वही मान सकता है, जिसके भाग ही फूट गए हों।

आख़िर तो ऐसे लाखों पैदल-सैनिक हैं, जो ‘मोशा-दौर’ की सियासत से पिछले सात साल से दो-दो हाथ कर रहे हैं। शिखर और मध्यम स्तर के ऐसे हज़ारों कांग्रेसी नेता हैं, जो पसीना-पसीना हैं, मगर लोकतंत्र के परिंदे को चील-कौओं से बचाने के लिए कोई कसर बाक़ी नहीं रखे हुए हैं। इनमें वे भी हैं, जिन्हें हर तरफ़ से अवहेलना ही मिलती है। अपनों की तरफ़ से भी। उनके किए का कोई बहीखाता रखने की फ़ुरसत किसी को नहीं है। अपना-तेरी की होड़ में जो ग़िरोह राहुल की इस अंतःशक्ति को कमतर दिखा रहा है, वह राहुल का असली दुश्मन है।

यह तो कोई राहुल से पूछे तो वे भी नहीं मानेंगे कि अकेले वे ही मोदी और भाजपा से लड़ रहे हैं। वे भी शायद ही कभी कहेंगे कि कांग्रेस में अकेला मैं ही संघ-कुनबे से लड़ सकता हूं, और कोई नहीं। फिर यह अर्चना-पंक्तियां लिख कौन रहा है कि अकेले राहुल, अकेले राहुल, दूसरो न कोई? यह आरती खतरनाक है। यह देव-आराधना विनाशकारी है। यह पूजा-पद्धति शंकास्पद है।

राहुल कांग्रेस की बेहद अर्थवान संपदा हैं। वे आज की कांग्रेस की अक्षुण्ण ऊर्जा हैं। मगर यह अवधारणा परोसना कि राहुल के अलावा सब भाड़ झोंक रहे हैं, कांग्रेस को उत्थान नहीं, अवसान की तरफ़ ले जाएगा। उन्हें एकलवाद के खांचे में मढ़ कर दीवार पर टांगने की साज़िश मत करिए। उनके हमजोलीपन-भाव में ही कांग्रेस के प्राण बसे हैं। उनके निजी श्रेष्ठि-भाव का शहद कांग्रेस-संगठन का विष बन जाएगा। इस लाक्षागृह के निर्माताओं के षड्यंत्र से सभी को सावधान रहने की ज़रूरत है, ख़ासकर राहुल को ख़ुद।

राहुल को ‘अपनी कांग्रेस’ बनाने का मशवरा देने वाले लुच्चे हैं। यह कांग्रेस, राहुल की ही कांग्रेस है। उन्हें यह समझाने वाले टुच्चे हैं कि आज की कांग्रेस में बैठे पुराने कांग्रेसी आपके साथ नहीं है। यह जालबट्टा कांग्रेस का सिपाही बने बैठे उन नन्हे-मुन्ने राहियों ने बिछाया है, जिन्हें राह चलते वह सब मिलता जा रहा है, जो बरसों-बरस की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी सब को शायद ही मिल पाता है। हो सकता है कि पुराने कांग्रेसियों में से कुछ इधर-उधर नैनमटक्का कर रहे हों। मगर नए-नकोरों में से ही कौन सारे राहुल से प्रतिज्ञाबद्ध हैं? ज़रूरत तो इन सबसे निज़ात पाने की है।

नेहरू जी के जमाने के तो अब दो-चार ही बचे हैं, मगर बाक़ी के ये पुराने कांग्रेसी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी की छांह में पल कर बड़े बने हैं। वे अपने-अपने समय में नेहरू-गांधी परिवार के बहुत नज़दीकी रहे हैं। अगर किसी को लगता है कि इनमें से कुछ कपूत निकल गए तो कैसे मान लें कि आज जिन्हें राहुल की बांहों का सहारा मिल रहा है, वे ताउम्र सपूत ही बने रहेंगे? कपूत तो जन्मते हैं। वे कभी भी अपने असली रंग में आ जाते हैं। इस गिरगिट-टोली की पहचान के लिए ख़ुर्दबीन का आविष्कार करना ही राहुल का असली इम्तहान है।

ईश्वर करे कि ऐसा न हो, मगर मुझे भय है कि अब से दो-तीन दशक बाद जब कोई कुलकलंकों के अनुपात का आकलन करेगा तो कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि नेहरू से सोनिया-युग तक के बनिस्बत राहुल-युग के कुलकलंक कई गुना ज़्यादा निकलंे? अब प्रतिबद्धता का गाढ़ापन वैसा नहीं रह गया है। सो, इस भय के बीज तब तक कैसे दफ़न हो सकते हैं, जब तक कि रहनुमाओं में अपनों की लियाक़त परखने का शऊर विकसित न हो जाए और राहुल को एकलखुरा-व्यक्तित्व के चक्रव्यूह में धकेलने की कोशिश कर रहे पतंगबाज़ छत की मुंडेरों से धकेल न दिए जाएं।

(लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया के संपादक हैं।)

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